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________________ जैन दर्शन का मानववादी दृष्टिकोण १७ ४. मानवतावाद का समर्थक विश्वबंधुत्व का प्रसार-प्रचार इसलिए करेगा कि हम सब ईश्वर की संतान हैं और ईश्वर द्वारा निर्मित होने के कारण मानव रिश्ते में भाई - भाई हैं । किन्तु मानववादी विश्वबंधुत्व की बात नैतिकता तथा वैज्ञानिकता के आधार पर करेगा। ५. मानवतावाद के अनुसार नैतिकता धर्म का पहला स्तर है जबकि मानववाद के अनुसार नैतिकता ही धर्म है। ६. मानवतावाद के अनुसार मनुष्य को स्वतंत्र और अपना भाग्यविधाता नहीं माना जा सकता क्योंकि मानवतावादियों के अनुसार सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ व सर्वव्यापी ईश्वर ही जगत् की हर गतिविधि का कर्ता है। जबकि मानववाद के अनुसार मानव स्वयं अपने पुरुषार्थ के बल पर ईश्वरत्व को प्राप्त करता है। ७. मानवतावाद के अनुसार सभी जीव समान हैं, अत: उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिए, जबकि मानववाद का एकमात्र लक्ष्य मानव है। मानववाद और मानवतावाद के उपर्युक्त अंतर को देखते हुए कहा जा सकता है कि दोनों में सैद्धान्तिक अंतर हो सकता है, लेकिन समग्रता की दृष्टि से देखें तो दोनों ही सिद्धान्तों का लक्ष्य मानवकल्याण है। मानव, दोनों के ही केन्द्र - बिन्दु में निहित है, मात्र सिद्धान्तों को क्रियान्वित करने का तरीका अलग-अलग है। मानववाद की विशेषताएँ १. ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार मानववाद ईश्वर से संबंधित न होकर मनुष्य के हितों से संबंधित है। २. मानववाद में मानव जीवन की व्याख्या एक विशेष दिशा में की जाती है। ३. मानववाद एक नैतिक दर्शन है और नैतिकता उसका एकमात्र आधार है। ४. मानववाद सभी अलौकिक, अतिप्राकृतिक तथा प्रभुतावादी शक्तियों का विरोध करता है। ५. इसके अनुसार समीक्षात्मक बुद्धि तथा वैज्ञानिक बुद्धि हमारे नैतिक मूल्यों की पुनर्रचना में सहायक हो सकते हैं। ६. मानववाद, मानवजीवन की समस्याओं को महत्त्व प्रदान करने की प्रवृत्ति है। ७. विश्व में मानव को सर्वोत्तम स्थान देने की प्रवृत्ति है । मानववाद और मानवतावाद में अंतर देखने के पश्चात् यह शंका उठ सकती है कि जैनदर्शन पूर्ण अहिंसावादी और पारलौकिकतावादी है फिर हम उसे मानववादी कैसे कह सकते हैं? अहिंसा के सम्बन्ध में समाधान हम आगे 'मानववाद और अहिंसावाद' शीर्षक के अन्तर्गत प्रस्तुत करेंगे। जहाँ तक पारलौकिकता के प्रत्यय को स्वीकार करने
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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