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________________ १६ श्रमण/जनवरी-मार्च १९९८ में कहीं-कहीं मानवतावादी दृष्टिकोण की भी झलक मिलती है, जैसे- मानवतावादी सहिष्णुता का आधार विभिन्न धार्मिक विश्वासों में निहित मौलिक एकता है जो सर्वव्यापी और आवश्यक रूप में नैतिक है। धर्मों की यही सर्वव्यापी नैतिकता मानवतावादी सहिष्णुता को सम्भव बनाती है।” (विश्व ज्योति, सितम्बर, ९५, पृ० - २३)। डॉ० वर्मा का यह कथन भारतीय दृष्टि से तो ठीक है, क्योंकि जो नैतिक शुभ है, वही धर्म है और जो धर्म है वही नैतिक शुभ है। किन्तु पाश्चात्य दृष्टि में धर्म और नैतिकता को अलगअलग रूप में देखा जाता है। वहाँ धर्म का सम्बन्ध भावना से है जबकि नैतिकता का सम्बन्ध कर्तव्य से है। धर्म का आधार विश्वास या श्रद्धा है जबकि नैतिकता का आधार बौद्धिकता है, विवेक है। इसी प्रकार डॉ० एल० के० एल० श्रीवास्तव ने अपने निबन्ध का शीर्षक तो "जैन धर्मः मानवतावादी दृष्टिकोण: एक मूल्यांकन' (श्रमण, १९८९, अंक-३) दिया है, किन्तु उन्होंने जैन दर्शन के मानववादी एवं मानवतावादी दोनों दृष्टिकोणों को प्रस्तुत किया है। एक ओर उन्होंने साधक को बिना ईश्वरीय कृपा के अपने निजस्वरूप को प्राप्त करने पर बल दिया है, तो दूसरी ओर 'सव्वे सत्ता न हंतव्वा' कहते हुए पूर्ण जीवदयावाद को भी प्रस्तुत किया है । उनके पूरे निबन्ध का अध्ययन करने के पश्चात् यह दृष्टिगोचर होता है कि डॉ० श्रीवास्तव ने मानववाद की अपेक्षा मानवतावाद को ज्यादा प्रस्तुत किया है । मानववाद और मानवतावाद के भेद - विज्ञान को मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ने भी स्पष्ट किया है- आज के लोग मानववाद और मानवतावाद को एक मान रहे हैं। येन-केन-प्रकारेण अपनी जिंदगी की जिजीविषा पूर्ण करना मानववाद की परिभाषा में भले ही आ सकता है। लेकिन मानवतावाद तो "जियो और जीने दो " की बात सिखाता है। मानववाद एक खोज है और मानवतावाद उन खोजी हुई वस्तुओं में हेय - उपादेय की कल्पना कराता है। मानववाद एक जीवन है तो मानवतावाद जीवन जीने की कला है। मानववाद एक सृष्टि है तो मानवतावाद एक दृष्टि है । मानववादी दृष्टिकोण दूसरों का विनाश करके अपनी जिन्दगी जीता है, लेकिन मानवतावादी अपनी जिन्दगी मिटाकर भी दूसरों को जीने में सहायता करता है । " यहाँ पर मुनिश्री ने जैनदर्शन के मनवतावादी पक्ष पर विशेष बल दिया है ७ मानववाद और मानवतावाद में अंतर १. मानववाद के लिए अंग्रेजी में ह्यूमेनिज्म (Humanism) तथा मानवतावाद के लिए (Humanitarianism) शब्द आता है। २. मानवतावाद ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता हैं, जबकि मानववाद में इसके लिए कोई स्थान नहीं है। ३. मानवतावाद मुख्यतः भावना पर आधारित है, जैसे- दया की भावना, करुणा की भावना, जबकि मानववाद बुद्धि पर आधारित है।
SR No.525033
Book TitleSramana 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshokkumar Singh, Shivprasad, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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