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प्रमण
कविताएं
हास्यव्यङ्ग्य क्षणिका
(१)
भारतीय रेल
राष्ट्रसन्त गणेश मुनि शास्त्री
जिन्दगी से ऊबे, एक आदमी ने आत्महत्या का विचार मन में । आने पर तय किया- रेल से कटकर मरूंगा। दूसरे दिन, खाने से भरा हुआ टिफिन लिये पटरी पर जा लेटा। कुछ देर बाद, एक व्यक्ति वहां से निकला, और इस आदमी को अपने नजदीक टिफिन खिसकाता देख बोला- 'अरे महाशय! मरने जा रहे हो?' उसने कहा-हां! आदमी ने प्रश्न किया-फिर अपना टिफिन नजदीक क्यों खिसका रहे हो? सुनकर वह आदमी तपाक से बोला भैया! तुम कहीं बुद्ध तो नहीं हो? इतना तो सोचते पटरी पर लेटा हूँ तो रेल से मरूंगा, भूख से नहीं। किन्तु, भूख है, समय पर ही लगती है, रेल का क्या भरोसा,