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१०२ श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९८
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(२)
अपरिमेय
प्रणाम
- रश्मि जैन
हे प्रभो महावीर मेरा भविष्य हो सकते हो तुम। तुम्हारा भविष्य हो नहीं सकते हम। मैं हो सकता हूँ तुम्हारा अतीत। तुम हो सकते हो मेरे अतीत। न भूत से है प्रीत न अनागत से लगाव। केवल रह गया है वर्तमान से चाव।
हे युग विधाता
त्राण त्राता। पितृ भ्रातृ माता। सबको साता। तेरे गुणों को बनने प्रधान हर प्राणी गाता हे युग प्रधान! लीन ज्ञान-ध्यान तुम्हारा सम्मान त्रैलोक्य महान हे समता धीर! महान गंभीर! हर प्राणी का देखकर दुःख बह जाता हो समंदर सा आंखों से नीर। ऐसे प्रभु को शत शत वंदन कोटिशः प्रणाम जो हैं अहिंसा के अवतार भगवान महावीर
वर्धमान
वर्तमान के पथ का खुशबू बिखराता हुआ है अद्वितीय फूल हम गये थे यह भूल हे महावीर! तुम ही हो हमारे उपासक/विकासक परम ध्येय/ज्ञेय अपरिमेय।
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