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________________ सम्राट अकबर और जैन धर्म भारतीय इतिहास में धार्मिक सहिष्णुता एवं सद्भाव के प्रतिष्ठापकों में जिन सम्राटों का उल्लेख मिलता है उनमें सम्राट अशोक एवं हर्ष के बाद सम्राट अकबर का नाम आता है। भारतीय मुस्लिम शासकों में जो सामान्यतया धार्मिक दृष्टि से कट्टरतावादी रहे हैं, अकबर ही एक मात्र ऐसा व्यक्तित्व है, जो सिद्धान्त एवं व्यवहार दोनों ही दृष्टियों से अपेक्षाकृत रूप में धार्मिक सहिष्णुता एवं सद्भाव का समर्थक रहा है, चाहे यह उसने अपने राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु ही किया हो। यह सत्य है कि वह अन्य धर्म व परम्पराओं के आचार्य, सन्तों और विद्वानों को अपने दरबार में सम्मानपूर्वक स्थान देता था। अकबर की धार्मिक उदारतावादी दृष्टि के परिणामस्वरूप अनेक कट्टर मुस्लिम उलेमा भी उसके आलोचक एवं विरोधी रहे हैं, फिर भी अकबर ने उनकी परवाह न करके अपने प्रशासन में अन्य धर्म-परम्परा के लोगों को समुचित स्थान दिया और उनकी भावनाओं को समझने का प्रयत्न किया। अकबर में धार्मिक सहिष्णुता एवं सद्भाव की दृष्टि किन कारणों से विकसित हुई, यह विवाद का विषय है? इस सम्बन्ध में इतिहासकारों एवं समालोचकों के मन्तव्य अलग-अलग हैं। कुछ यह मानते हैं कि अकबर ने अपनी नीतियों में जिस धार्मिक उदारता का परिचय दिया उसका कारण उसकी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा ही थी। वह अपने प्रशासन में जिस अमन व शान्ति की अपेक्षा रखता था, वह धार्मिक कट्टरता में सम्भव न होकर धार्मिक सहिष्णुता एवं सद्भाव के द्वारा ही सम्भव थी। अपनी इस उदारवादी दृष्टि के आधार पर वह भारतीय जन-मानस को विशेष रूप से हिन्दू जन-मानस को प्रभावित करना चाहता था और यह दिखाना चाहता कि वह एक मुस्लिम शासक होकर भी हिन्दुओं का हितचिन्तक है। अत: विचारक यह मानते हैं कि उसकी यह धार्मिक सद्भाव व सहिष्णुता की नीति वस्तुत: उसकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा का ही परिणाम है, क्योंकि अपने प्रशासन के प्रारम्भ और अन्त में वह एक कट्टर मुस्लिम शासक के रूप में हमारे सामने आता है, जबकि उसका मध्यकाल धार्मिक उदारता का परिचायक है। इससे यह फलित होता है कि अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति उसकी प्रशासनिक आवश्यकता थी, क्योंकि यदि स्वभावत: इन सिद्धान्तों में उसकी आस्था होती तो जिस जजिया कर को उसने समाप्त किया था, उसे ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525030
Book TitleSramana 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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