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________________ सम्राट अकबर और जैन धर्म अपने सुस्थापित होने बाद पुनः ला नहीं करता। दूसरा दृष्टिकोण यह भी है कि अकबर वस्तुतः एक उदार दृष्टिकोण-` सम्पन्न व्यक्ति था, क्योंकि उसने अपने जीवन के आधार पर यह पाया था कि हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों ही धर्मों के कट्टरतावादी लोग वस्तुतः जन-मानस को गुमराह करते हैं और सामाजिक शान्ति को भंग करते हैं। फतेहपुर सीकरी में बनाए गए इबादतख़ाने में ये धार्मिक लोग किस प्रकार से अपने स्थान आदि को लेकर आपस में लड़ते थे, इस सबको देखकर, सम्भव है उसे धर्मान्धता से वितृष्णा उत्पन्न हो गयी हो और उसने धार्मिक सहिष्णुता एवं सद्भाव की दिशा में अपने प्रयत्न प्रारम्भ किये हों। जीवन के अन्तिम काल में उसमें जो कुछ धार्मिक कट्टरता के लक्षण प्रतीत होते हैं, उनका कारण यह है कि जीवन की अन्तिम अवस्था में परलोक के भय के कारण धर्म के प्रति एक विशेष लगाव उत्पन्न हो जाता है । अन्तिम काल में उसकी धार्मिक कट्टरता सम्भवत: इसी का परिणाम थी। ७२ उसके मन में जो धार्मिक सहिष्णुता एवं सद्भाव विकसित हुआ उसका कारण क्या था, इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कुछ विद्वानों ने यह भी माना है कि वह जैन आचार्यों के प्रभाव के परिणामस्वरूप हुआ था। जैन धर्म अपने प्रारम्भिक काल से ही अनेकान्तवाद का समर्थक रहा है और उसका सिद्धान्त धार्मिक सहिष्णुता एवं सद्भाव का समर्थक है। यह तो स्पष्ट है कि अकबर हीरविजय, समयसुन्दर, विजयसेन, भानुचन्द्र आदि अनेक जैन आचार्यों और मुनियों के सम्पर्क में रहा है। जैन धर्म में धार्मिक सहिष्णुता व सद्भाव का विकास जो अनेकान्त के सिद्धान्त पर हुआ है उसकी समस्त चर्चा तो यहाँ सम्भव नहीं है, किन्तु उसके आधार यह अवश्य कहा जा सकता है कि अकबर के जीवन में धार्मिक सहिष्णुता व सद्भाव के एवं पशुवध और मांसाहार को कम करने सम्बन्धी जिस दृष्टिकोण का विकास हुआ वह जैन आचार्यों के सम्पर्क का ही परिणाम था । अकबर से जिन जैन आचार्यों का विशेष रूप से सम्बन्ध रहा है उनमें हीरविजय सूरि, विजयसेन सूरि, भानुचन्द्र उपाध्याय, उपाध्याय शान्तिचन्द्र, उपाध्याय समयसुन्दर, उपाध्याय सिद्धिचंद्र, जिनचंद्रसूरि, जिनसिंहसूरि, नन्दविजय, जयसोम, महोपाध्याय साधुकीर्ति आदि मुख्य हैं। अतः अकबर में पशुवध, मांसाहार-निषेध तथा धार्मिक सहिष्णुता की जो प्रवृत्ति देखी जाती है उसका एक कारण उस पर इन जैन सन्तों का प्रभाव भी है । अकबर ने जैन सन्तों को जो फ़रमान प्रदान किये थे, उनसे भी इन तथ्यों की पुष्टि होती है। अकबर के द्वारा जैन आचार्यों के जारी फ़रमानों में मुख्य फ़रमान और उनकी विषयवस्तु निम्रलिखित है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525030
Book TitleSramana 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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