SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ : श्रमण/जनवरी-मार्च / १९९७ ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है ।। १३ ।। भावहेत ग्यान भेट, मिथ्यातम दीये मेट, सुरत लगाई सेट्ठ, खिमा गुण भारी है । ससी जेम दिष्ट सोम, हुवे नही प्रतिलोम, देख-देख चाले भोम, दया अधिकारी है । दिखावत सुध राह, मेट दीया भवदाह, सकल जीवांरा नाह, पाप परिहारी है । भिनभिन भाखे भेद, मूलनही करे छेद, ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है ।। १४ ।। दिल साफ निस दिन, भजत है भगवान, मिथ्यासुत न आणे मन, ईसा एकतारी है । अधिका न खाए अन्न, तप करै दाहै तन, कोडी नहीं एक कन्न, छती रिद्ध छाडी है । धारत धर्म ध्यान, छोडे नहीं एक छीन, गौतम उपमा दीन, धीर गुणकारी है । भलो उपदेस भने, जुगत सुं तारै जन, ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है ।। १५ ।। मिथ्या मोह अने भूल, हिंस्या तजे लघु थूल, झूठ नहीं बोले भूल, तजी सब चोरी है । परहरै मैथुन, नौ विध तजे धन रती नहीं भखै अन्न, धर्म का धोरी है । सुगुरा की घरी साख, कुपंथन भरे विख, भवरां जेम लहे भिख, छोडी सब चोरी है । विरक्त रहै सदा, लोभ नहीं धारै कदा, ? " ऐसे अणगार ताको, वन्दना हमारी है ।। १६ ।। परछन परगट, मारे नहीं काया षट कुज' रुख दियो कंट, सत सम सैरी है । वरजी ने मन वट, अने मूल मद अठ, काया सौ तजो कपट, ग्रन्थ पास गेरी है । विचरत जोग वट, नभ पर जेम नट सेती भव तट, आत्मा उजारी है । # तप मंगलग्रह | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy