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अणगार वन्दना बत्तीसी
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अधको न खावे अन्न, तप करै दाहे तन, कोडी नही एक कन्न, छती रीध छाँडी है। मारीयो दुष्टमन, लीया वीस सत्त गुण, हुवे नही कृतघन,१ सुदिष्ट निहारी है। भलो उपदेश दीन, जुगत से तारे जन, ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है ।।१०।। कीरीया कवाण कीध, दया तणा वंध दीध , सांच की फणंद सीद्ध, बहोत करारी है। तपस्या का कीया वाण, ईरजा निसान जान, वाजा है, मधुर वाण, ध्यान की कटारी है। समकत सेल डाल, धीरज की धरी ढाल, ग्यान घोड़े चढ्या लाल, खिमा तलवारी है। सील सेना लेई लार, कर्म सुं करे राड , ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है ।।११।। अकल बहुत उंडी, साचो पंथ लियो ढूंढ़ी, रात-दिन जाकी हुंडी, प्रभु जी सकारी है । ग्यान तणी रही पीक, भिन-भिन करी ठीक, सदा रहे है निरभीख, माया सब विडारी है। बेयालीस दोष टाल, निरदोस लेवै आहार , संजम का वहै भार, रंजन लिगारी है । तपतेज रह्या दीप परीसा कु लीया जीत , ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है।।१२।। तजीया चंपेल तेल, मन सब दीया मेल्ह , विषे रुप विषवेल, उरथी उपारी है। रात-दिन ग्यान रेल, बढे सदा धर्म वेल , खेलत उत्तम खेल, साधु सुवीचारी है। ठगारी कुमत ठेल, पांचो मल दीया पेल , पंडताइ रेल-पेल, अकल अपारी है साही नै संजम सेल, हणत करम हेल
१. कृतघ्न। २. ईर्या। ३. परीषह।
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