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श्रमण / जनवरी - मार्च / १९९७
मनु पंच राखै चीर, कौडी नहीं एक तीर, ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है ।।६।। जिणजी को लीयो धर्म, मेट दीयो मिथ्यातम, काम - भोग दीये वम, तजी रीद्ध सारी है । साकार टाकार सम, गाली बोल्या खाये गम, दोधी छै आत्मा दम, खिमा गुण भारी है । वीस दोय परीसा' गम, काट दीया निज कर्म, जाको काहा करे जम, कुगति कुठारी है। सिद्धान्त में रहै रम, चाले नहीं धमधम्म, ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है ।।७।। मुगति को लहे मग, जोय जोय मेले पग, मन में ना राखे दग, तजी सब नारी है। दुरजन नर मग्ग, गाली बोले मुख अग्ग, देवे नहीं दगा, खिमता अपारी है। ज्ञान ध्यान रहे लग्ग, गुण को न ही है थग्ग, उपदेस न्यारे जग्ग, कुमतने मारी है । तपस्या को डाल्या खग्ग, मारी है ने कर्म ठग्ग, ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है ।।८।। निरवद बोलै वैण, सकल जीवा रा सैण, चारित्र में पावे चैन, जगत हितकारी है । साचो जाणै मत जेण, वीजा सहु माने फैन, उपदेश देवै ऐन, माया सब डारी है । बस राखै निज नैण, नार सब जानै बैन, निरदोष लेवे लेण, सुध ब्रह्मचारी है । ध्यान धरे दिन रैण, समो जाको केहण रहेण, ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है ।। ९ । । करणी करे कठण, दुरबल करे तन, ऊतारे है कर्म रण, चौकडी घटाई है ।
बाईस परीषह ।
सहन करना।
खिमता- क्षमा ।
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