SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणगार वन्दना बत्तीसी : ६३ कुमता कुं वीदारी है। सूने घर समधार, न करे देह की सार , शील पाले खग धार विष दूर टाली है । राग-द्वेष मल धोये, निरमल हुवा धोई, ऐसे अणगार ताको वंदना हमारी है ।।३।। अखंड आचार पाले, दोष सब दूर टाले , जनम मरण गाले, ममता कु मारी है। तप कर तन गाले, नारी सामो नहीं निहाले, विषे दिष्ट पाछे वाले, आत्मा सुधारी है। छोड दीया रंग-राग, नहीं करे परमाद' , चाखे अनभो२ स्वादि, उग्ग विहारी है। वसि करे तन मन, जालत करममल, ऐसे अणगार ताको वंदना हमारी है ।।४।। ज्ञान ध्यान रहे लीन, जिम नीर माहिं मीन, परवचन रसि पीन, सुध गुणधारी है। इंद्री पाँच बस कीन, भया घणा परवीन, देव गुर धर्मचीन, विसुध वीचारी है। देह ने पीडत पनी होवे नहीं हीन दीन , करम करे छीन, धरम का वोपारी है। जथा-तथा पंथ चीन, मुक्ति का डंका दीन , ऐसे अणगार ताको, वंदना हमारी है।।५।। परीसा' उपना धीर, होवे नहीं दिलगीर , सेठा रहे सूरवीर, द्वेष ना लिगारी है। ममता नहीं शरीर, परतणी जाणे पीड, सुजतणा पीवे नीर, पाप परिहारी है। मारन करम मीर, तपस्या का वहे तीर , राखे नहीं तकसीर, आत्मा को तारी है। प्रमाद। २. ३. ४. अनुभव। प्रवचन। परीषह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy