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________________ ५६ : श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७ जीवित पकड़कर लाया। द्रमक से पूछा- हे! हे! भ्रातृवैरी! किस अस्त्र से तुम्हें मारूँ। द्रमक ने उत्तर दिया-जिससे शरणागत पर प्रहार करते हैं उससे प्रहार करो। द्रमक के इस उत्तर पर वह सोचने लगा- शरणागत पर प्रहार नहीं किया जाता है और उसने द्रमक को मुक्त कर दिया। यदि धर्म के उस अज्ञानी ने भी मुक्त कर दिया तो पुन: परलोक से भयभीत वात्सल्य के जानकार क्यों न सम्यक्त्व का पालन करेगें। (२) कषाय विषयक दृष्टान्त क्रोध कषायविषयक मरुक या मरुत दृष्टान्त । अवहंत गोण मरुए चउण्ह वप्पाण उक्करो उवरि । छोढुं मए सुवट्ठाऽतिकोवे णो देमो पच्छित्तं ।।१०३।। मरुक नामक व्यक्ति अपने बैल को जोतने के लिए खेत पर ले गया। जोतते-जोतते बैल थककर गिर पड़ा और उठ न सका। तब मरुक ने उसे इतना मारा कि मारते-मारते पैरा या चाबुक टूट गया, तब भी बैल नहीं उठा। अन्य लकड़ी न मिलने पर मरुक लाठी से मारने लगा। एक लाठी से मारा, फिर दो लाठियों से मारा, इसतरह चार लाठियों से इकट्ठ मारा, तब भी बैल न उठा और अन्तत: मार खाकर बैल मर गया। गोवधजनित पाप की विशुद्धि के लिए वह धिग्जातीय मरुक किसी ब्राह्मण के पास गया। सारी बात बताकर उसने अन्त में कहा कि आज भी बैल के ऊपर मेरा क्रोध शान्त नहीं हुआ। ब्राह्मण ने कहा- तुम अतिक्रोधी हो, तुम्हारी शुद्धि नहीं है, तुम्हें प्रायश्चित्त नहीं दूंगा। इसप्रकार साधु को भी क्रोध नहीं करना चाहिए। यदि क्रोध उत्पन्न भी हो तो वह जल में पड़ी लकीर के समान हो, जो क्रोध पुनः एक पक्ष में, चातुर्मास में और वर्ष में उपशान्त न हो उसे विवेक द्वारा शान्त करना चाहिए। मान कषाय विषयक अच्वंकारिय भट्टा दृष्टान्त १ वणिधूयाऽच्चंकारिय भट्टा अट्ठसुयमग्गओ जाया । वरग पडिसेह सचिवे, अणुयत्तीह पयाणं च ।।१०४।। णिवचिंत विगालपडिच्छणा य दारं न देमि निवकहणा । खिंसा णिसि निग्गमणं चोरा सेणावई गहणं ।।१०५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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