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श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७
आने पर प्रद्योत अपने अनलगिरि हाथी-रत्न पर सवार होकर युद्ध के लिए सुसज्जित हो कवच धारण कर गुप्त रूप से प्रदोषवेला में नगर में प्रविष्ट हुआ। वहाँ वसन्त काल में कृत्रिम प्रतिमा निर्मित करवाकर, उसे सजाकर उच्चस्वर में गीत गाते हुए देवतावतारित प्रतिमा लाने के लिए राजभवन में निर्मित मन्दिर में प्रविष्ट हुआ। छल से कृत्रिम प्रतिमा को मन्दिर में स्थापित किया और देवतावतारित प्रतिमा का हरणकर चला गया।
जिस रात्रि अनलगिरि वीतिभय नगर में प्रविष्ट हुआ, गन्धहस्ति के गन्ध से उसके प्रवेश के विषय में लोगों को ज्ञात हो गया। महामन्त्री ने विचार किया, निश्चय ही अनलगिरि हाथी-स्तम्भ नष्ट कर आया हुआ है अथवा दूसरा कोई वनहस्ती आया हुआ है। प्रात:काल अनलगिरि के आने के लक्षण दिखाई पड़े। राजा को बताया गया कि प्रद्योत आकर वापस चला गया। स्वर्णगुलिका की खोज करवाने पर ज्ञात हुआ कि उसके निमित्त ही प्रद्योत आया था। मन्दिर में विद्यमान प्रतिमा की सत्यता की परख के लिए, कि यह देवतावतारित प्रतिमा है या उसकी प्रतिमूर्ति, उस पर पुष्प रखे गये। मूल प्रतिमा के गोशीर्षचन्दन की शीतलता के प्रभाव से पुष्प मलिन नहीं होते थे। राजा स्नान करने के पश्चात् मध्याह्न में देवायतन गये और पूर्व कुसुमों को म्लान हुआ देखकर राजा ने जान लिया कि मूल प्रतिमा का हरण हो गया है। क्रोधित उदायन ने चण्डप्रद्योत के पास दूत भेजा कि दासी को भले ही हर ले गये किन्तु प्रतिमा वापस भेज दो। चण्डप्रद्योत की ओर से सकारात्मक उत्तर न मिलने पर उदायन ने समस्त साधनों एवं सेनाओं के साथ प्रस्थान किया। ग्रीष्म का समय होने से मरु जनपद में यात्रा करते हुए जलाभाव से समस्त सेना प्यास से व्याकुल हो गयी। समस्या के निवारण के लिए उदायन राजा ने प्रभावती देव की आराधना की। देव के शासन में कम्प उत्पन्न हुआ। देव द्वारा अवधिज्ञान का प्रयोग करने पर उदायन राजा की आवृत्ति दिखाई पड़ी। देव ने तुरन्त आकर बादलों से जलवर्षा करवायी जिससे देवता द्वारा निर्मित पुष्कर में जल एकत्र हो गया। इस देवकृत पुष्कर को ही अज्ञानी लोग पुष्करतीर्थ कहने लगे।
उज्जयिनी पहुँचकर उदायन राजा ने प्रद्योत को घेर लिया और अधिसंख्य लोगों की उपस्थिति में उससे कहा- तुमसे हमारा विरोध है। हम दोनों ही युद्ध करेंगे, शेष जनों को मरवाने से क्या? प्रद्योत ने इसे स्वीकार कर लिया। बाद में दूत के माध्यम से सन्देश भिजवाया-किस प्रकार युद्ध होगा- रथों से, हाथियों से या अश्वों से। उदायन ने कहा तुम्हारे अनलगिरि जैसा उत्तम हाथी मेरे पास नहीं है, तब भी तुझे जो अभीष्ट है उससे युद्ध करो। प्रद्योत ने कहा- रथ से युद्ध करेगें। निश्चित दिन उदायन रथ पर उपस्थित हुआ जबकि प्रद्योत अनलगिरि हाथी-रत्न के साथ। शेष सेनापति, सैन्यसमूह दर्शक मात्र था, तटस्थ था।
। युद्ध आरम्भ होने पर उदायन ने हाथी के चारों पैरों को बींध दिया। हाथी गिर पड़ा, उज्जयिनी पर उदायन का अधिकार हो गया। स्वर्णगुलिका भाग गई। देवताधिष्ठित प्रतिमा
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