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________________ योगनिधान : २३ योगनिधान में १०८ गाथाएँ हैं जो आठ अध्यायों में विभाजित हैंप्रथम अध्याय उमारिनासन नाम से है जिसमें चार ४ गाथाएँ हैं। दूसरा अध्याय स्त्रीगर्भ नाम से है जिसमें तेईस २३ गाथाएँ हैं। तीसरा अध्याय हर्षनासन नाम से है जिसमें बारह १२ गाथाएँ हैं। चौथा अध्याय राघणिनासन नाम से है जिसमें पाँच ५ गाथाएँ हैं। पांचवाँ अध्याय कामलनासन नाम से है जिसमें उन्नीस १९ गाथाएँ हैं। छठा अध्याय सूलनासन नाम से है जिसमें दस १० गाथाएँ हैं। सातवाँ अध्याय उकारिकानासन नाम से है जिसमें चार १० गाथाएँ हैं। इसमें हिक्कानासन की दो गाथाएँ भी सम्मिलित हैं। आठवाँ अध्याय फुटकर जिसमें इकतीस ३१ गाथाएँ हैं।। कुल १०८ इस तरह कुल एक सौ आठ गाथाओं में योगनिधान निबद्ध है। इसमें विभिन्न रोगों के शमन हेतु मन्त्रों का भी उल्लेख है जिनके जाप से रोग नष्ट हो जाते हैं। इसमें गर्भ निरोधक औषधि से सम्बन्धित गाथा भी है। __ योगनिधान के प्रारम्भ में जो मंगलाचरण किया गया है उससे कवि के जैन मतालंबी होने का संकेत मिलता है यथा : णमिऊण वीयरायं जोयविसुद्धं तिलोय उद्धरणे। जोयणिहाणं सारं वज्जरिमो मे समासेण।। वीयराय (वीतराग) शब्द स्पष्टत: जैन परम्परा का सूचक है। इसकी सहयोगी रचना प्राकृतवैधक का मंगलाचरण, जिसमें जिनेन्द्र भगवानरूपी वैद्य को नमन किया है, निम्नप्रकार है - णमिऊण जिणोविज्जो भवभमणे वाहि केउणसमत्यो। पुणुविज्जयं पयासमिजं भणियं पुव्वसूरीहिं ।। आगे गाथाबद्ध रचना का उल्लेख करते हुए कवि अपना नाम निर्दिष्ट करता है:गाहाबंधे विरयमि देहीणं रोय णासणं परमं। हरिवालो जं बुल्लइतं सिज्झइ गुरुं पसायणं ।। उपर्युक्त मंगलाचरण से कवि के जैन धर्मानुयायी होने में कोई सन्देह नहीं रहता है। रचना की समाप्ति करते हुए कवि अपनी अज्ञता और मंदबुद्धि के लिए बुद्धिमन्तों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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