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श्रमण)
त्रिरत्न, सर्वोदय और सम्पूर्ण क्रान्ति
डॉ. धूपनाथ प्रसाद
सम्पूर्ण भारतीयदर्शन में जैनदर्शन का अपना एक अलग स्थान है, इसके चिन्तन में सजीव-अजीव सभी का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है, जैनदर्शन वैयक्तिक नहीं, समष्टि में विश्वास करता है, 'अनेकान्त' इसका द्योतक है। सभी दर्शनों में मोक्षप्राप्ति के अलगअलग मार्ग बताये गये हैं। जैनदर्शन में मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सम्पूर्णता का द्योतक है यहाँ 'सम्यक' शब्द प्रतिष्ठित है, 'सम्यक सम्पूर्ण, सब ओर या यों कहें चारों तरफ से चातुर्दिक विकास के बाद का प्राप्त किया हुआ परिणाम है। यह 'त्रिरत्न' में प्रतिष्ठित है- सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र. 'त्रिरत्न' शब्द भी हमें पूर्णता का बोध कराता है जैसे- त्रिकाल, त्रिभुवन, त्रिलोक- यह सब अपने-अपने क्षेत्र में सम्पूर्ण शब्द हैं। पुरस्कार या परिणाम (Result) में भी तीन ही का महत्त्व है- प्रथम, द्वितीय और तृतीय। किसी भी भाषा के व्याकरण (Grammar) की चर्चा में पुरुष (Person) भी तीन ही बताये गये हैं- प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष. कहने का तात्पर्य यह है कि तीन के बाद की कोई भी स्थिति सामान्य है, जो पूर्ण भी है, अपूर्ण भी।
सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक्-चारित्र की विकास यात्रा में हम देखते हैं कि त्रिविध कल्पना का बड़ा महत्त्व है और वह सभी कालों (Tense) से पूर्णता की
ओर संकेत करता है। हमारा ध्यातव्य यहाँ 'सम्यक्' शब्द से है, जो दर्शन, ज्ञान और चारित्र से जुड़कर जैनदर्शन में 'त्रिरत्न' के रूप में प्रतिष्ठित है और मोक्ष-मार्ग की विशद व्याख्या करने में समर्थ है। हमारा उद्देश्य इससे अलग न होकर इसमें विस्तार पाने का
"हिन्दी शब्द सागर'' में 'सम्यक्' शब्द के अनेक अर्थ मिलते हैं जो 'सम्यक्' शब्द की पूरी संरचना और व्याख्या करने हेतु यथेष्ट हैं। संज्ञा (संस्कृत पुलिंग) के रूप में 'सम्यक् का अर्थ है- समुदाय, समूह।
____ 'सम्यक्' विशेषण के रूप में ये अर्थ ग्रहण करता है- पूरा, समस्त, सब, सही, युक्त, ठीक, उचित, शुद्ध, सत्य, यथार्थ, सुहावना, रुचिकर, एकरूप, साथ जीने
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