________________
श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९६
उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों को पावन कर रहे हैं । यहाँ से आचार्य श्री का विहार दिल्ली की ओर होने की सम्भावना है। आचार्य सम्राट् के पावन सान्निध्य में वर्षी तप करने वाले भाई-बहनों से विनम्र निवेदन है कि वे पारणे के लिए दिल्ली अवश्य पहुँचें और आचार्य श्री के पावन सान्निध्य में पारणा करने का सौभाग्य प्राप्त करें। विशेष जानकारी श्री आर० डी० जैन, उपाध्यक्ष जैन कॉन्फ्रेन्स, से निम्न पते पर प्राप्त की जा सकती है
८४ :
―
श्री आर० डी० जैन, सी-१३, विवेक विहार, दिल्ली ९५
—
पुरस्कार हेतु कृतियाँ आमंत्रित
अखिल भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्रिपरिषद द्वारा वर्ष १९९५ ई० के पुरस्कारों के लिए प्रविष्टियाँ दिनांक १५ फरवरी १९९६ तक आमंत्रित हैं। प्रत्येक पुरस्कार की राशि २५००.०० रुपए है, किन्तु इनके बढ़ने की सम्भावना है। यह पुरस्कार जैन साहित्य के मौलिक सृजन को विकसित करने हेतु किसी विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत पी-एच० डी० अथवा डी० लिट्० उपाधि हेतु, सम्पादन, पत्रकारिता आदि के क्षेत्र में श्रेष्ठ अवदान तथा उत्कृष्ट धार्मिक प्रवचनों एवं धर्मप्रभावना आदि के लिए दिया जाएगा। पुरस्कारों हेतु मुद्रित ग्रन्थ की तीन प्रतियाँ, टंकित या हस्तलिखित ग्रन्थ की एक प्रति १५ फरवरी १९९६ तक डॉ० जयकुमार जैन, महामंत्री अ० भा० दि० जैन शास्त्रिपरिषद, २६१/३ पटेलनगर, नई मण्डी, मुजफ्फरनगर २५१ ००१ (उ० प्र०) के पते पर पहुँच जाना चाहिए। प्राप्त कृतियाँ शास्त्रिपरिषद की सम्पत्ति होंगी, किन्तु टंकित या हस्तलिखित प्रति डाकव्यय प्राप्त होने पर पुरस्कार हेतु स्वीकृत न होने की दशा में लौटाई जा सकती है।
!
पं० महेन्द्र कुमार जैन स्मृतिग्रन्थ का प्रकाशन
स्व० पं० महेन्द्र कुमार जैन के पूर्व प्रकाशित महत्त्वपूर्ण लेखों का ६०० पृष्ठों का एक संकलन पं० महेन्द्र कुमार जैन स्मृतिग्रन्थ के नाम से शीघ्र प्रकाशित हो रहा है। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का अग्रिम मूल्य २०१.०० रुपया निर्धारित किया गया है। इस सम्बन्ध में स्मृतिग्रन्थ प्रकाशन समिति, कबीर भवन, हाउसिंग बोर्ड, दमोह से सम्पर्क किया जा सकता है।
महामहिम राष्ट्रपति द्वारा महो० ललितप्रभ सागर जी के ग्रन्थ का विमोचन
जोधपुर, २ फरवरी । महामहिम राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा के करकमलों से महोपाध्याय ललितप्रभ सागर जी द्वारा सम्पादित 'विश्व प्रसिद्ध जैन तीर्थ :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org