________________
पुस्तक समीक्षा :
चेतना, ध्यान एवं आचार-विचार से सम्बन्धित पुस्तकों का प्रकाशन प्रायः समय-समय पर होता रहता है किन्तु मुनि श्री चन्द्रप्रभ सागर द्वारा रचित चेतना का विकास नामक पुस्तक में प्रश्नोत्तरीत्या अनुभूत एवं सैद्धान्तिक उभयविध रूप से उदाहरण प्रस्तुत कर जटिल प्रश्नों का सहज रूप में समाधान प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक के पाँच विभाग हैं, जो इस प्रकार हैं -अमृत की अभीप्सा, मनुष्य का अन्तरंग, चेतना का ऊर्ध्वारोहण, परमात्मा, चेतना की पराकाष्ठा और चलें सागर के पार । उक्त पाँच विभागों में मुनि ने अपनी सशक्त लेखन शक्ति से जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है। पुस्तक की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें अधिकांश उदाहरण व्यावहारिक जगत् से ही लिये गए हैं जिससे जनसामान्य को कठिन से कठिन प्रश्नों का उत्तर सरलता से समझ में आ सकता है। अतएव पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। मुद्रण कार्य निर्दोष है। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक है।
७९
पुस्तक : नागफनी द्वारे द्वारे, लेखक : ऐलक सम्यक्त्व सागर, प्रकाशक : आलोक जैन, झाँसी, पृष्ठ : ६१, प्रथम संस्करण : १९९५, आकार : डिमाई पेपर बैक, मूल्य : ग्यारह रुपये ।
Jain Education International
---
- डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी
मुनियों एवं आचार्यों का जीवन आचार से परिपूर्ण होता है। वे जिस आचार का उपदेश देते हैं वही सदाचार कहा जाता है । ऐलक श्री सम्यक्त्व सागर जी महाराज ने समाज में व्याप्त बुराइयों की ओर संकेत करते हुए करगुवां वर्षावास में जो उपदेश दिये उन्हीं उपदेशों का संकलन करके इस 'नागफनी द्वारे द्वारे' पुस्तक का आविर्भाव हुआ है। इस वर्षावास में ऐलक श्री ने समाज में व्याप्त बुराइयों के उन्मूलन हेतु विभिन्न कहानियों का आश्रय लेकर जनजागरण का अभियान चलाया। उनके उपदेशों से असंख्य लोग लाभान्वित हुए । उनके उपदेशों को सुनने से वंचित हुए लोगों के लिये यह पुस्तक निश्चित रूप से लाभदायी होगी ।
For Private & Personal Use Only
पुस्तक का मुद्रण कार्य निर्दोष एवं साज-सज्जा आकर्षक है। मायारूपी भवसागर के भँवर में फँसे व्यक्तियों के लिए यह पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक एवं मुद्रण कार्य निर्दोष है।
- डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी
www.jainelibrary.org