________________
६६ : श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९६
वीणा का तार इतना मत कसो । कि / टूट जाए संगीत संवेदना की धार / छूट जाय !
यह 'नर्मदा के नरम कंकर' में से केवल एक उदाहरण है जिसमें आचार्य श्री ने वह आध्यात्मिक ज्ञान दिया है जिसे हम सब अपने व्यवहार में अमल में ला सकते
हैं।
___ 'डूबो मत लगाओ डुबकी' के अन्तर्गत संगृहीत कविताओं में इसी शीर्षक से एक स्वतन्त्र कविता भी है। इसमें आचार्य श्री ने जीवन और मृत्यु के भेद को 'डुबकी लगाने' और 'डूबने' के बीच जो अन्तर है, उसे स्पष्ट किया है। अनेक कविताओं में उन्होंने इसी प्रकार के न जाने कितने दार्शनिक विचारों को काव्यकणों में पिरोया है। 'भीगे पंख' शीर्षक कविता में उन्होंने रागादि से उत्पन्न मनुष्य की विवशता को जो उसके आध्यात्मिक स्वतन्त्रता के लिए बाधक होती है, भीगे पंख वाली एक मक्षिका की तरह प्रस्तुत किया है। यह मक्षिका भीगे पंख होने से
उड़ने की इच्छा रखती है । पर उड़ ना पाती है धरती के ऊपर उठ न पाती । यह सत्य है कि रागादि की चिकनाहट । और पर का संपर्क परतंत्रता का प्रारूप है
'तोता क्यों रोता' शीर्षक में भी इसी प्रकार अनेकानेक विचार-कण अनुभूतियों में पगे हैं और काव्यात्मक भाषा में रचे-बसे हैं। इसमें एक कविता अपने काव्यात्मक सौष्ठव के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है – 'नरम में न रम' -
अरे मन / तू रमना ही चाहता है । श्रमण में रम चरम चमन में रम / सदा सदा के लिए / परम नमन में रम । न रम नरम में / न...रम ! न...रम !
- प्रो० सुरेन्द्र वर्मा
पुस्तक : चेतना के गहराव, लेखक : दिगम्बर जैनाचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज, मुद्रक : इण्डियन आर्ट प्रेस, नई दिल्ली, पृष्ठ : ९४ ,आकार : क्राउन, प्रथम संस्करण : १९९५, मूल्य : चिन्तन-मनन।
चेतना के गहराव' में सन्त कवि आचार्य श्री विद्यानंद जी की लगभग ८० कविताएँ संगृहीत हैं। इन्हें पाँच खण्डों में प्रस्तुत किया गया है। ये हैं – 'प्रकृति की गोद में' (१४ कविताएँ), 'लहराती लहरें' (६ कविताएँ), 'चेतना के गहराव में' (२७ कविताएँ), 'चेहरे पर आलेख' (१५ कविताएँ) और 'जीने की विधा' (१५ कविताएँ)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org