SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धूमावली-प्रकरण : ६३ वैजयंत में; तह = तथा; जयंतपराजिय = जयंत, अपराजित; विमाणसव्वट्ठसिद्धेसु = सर्वार्थसिद्ध विमानों में। अनुवाद : ऊर्ध्वलोक में सौधर्म देवलोक, ईशान देवलोक, सनत्कुमार देवलोक, माहेन्द्र देवलोक के सुन्दर श्रेष्ठ कल्पों में तथा ब्रह्मलोक, लातंक देवलोक, महाशुक्र देवलोक, सहस्र देवलोक, आनत देवलोक, प्रानत देवलोक, अच्युत देवलोक के कल्पों में नव ग्रैवेयकों में तथा श्रेष्ठ विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्ध नामक पाँच अनुत्तर विमानों में जो भी जिन प्रतिमाएँ हैं उन्हें समर्पित यह धूप मेरा समुद्धार करे ।। ८-१० ॥ सिद्धाण य सियघणकम्म-बंधमुक्काण परमनाणीणं । आयरिया (ण तहेव य पं) चविहायारनिरयाणं ।। ११ ।। तह य उवज्झायाणं, साहूणं झाणजोगनिरयाणं । तवसो(सु)सियसरीराणं सिद्धिवहूसंगमपराणं ।। १२ ।। सुयदेवया वि पंकय-पुत्थ(य) मणिरयणभूसियकराए । वेयावच्चगराणं य समुद्धओ मे इमो धूओ ।। १३ ।। सिद्धाण = सिद्ध; सियघणकम्मबंधमुक्काण = समस्त घनघाती कर्मों के बन्धन से मुक्त; परमनाणीणं = केवलज्ञानी को तहेव = उसी तरह; पंचविहायारनिरयाणं = पंचविध आचार के पालन में निरत; आयरिय = आचार्य भगवंतों को, तह य = तथा और; उवज्झायाणं = उपाध्याय भगवंतों को; साहूणं = साधु भगवंतों को; झाणजोगनिरयाणं = ध्यान एवं योग में निरत; तवसो सुसियसरीराणं = तप से शोषित शरीर वाले; सिद्धिवहूसंगमपराणं = सिद्धवधु को प्राप्त करने में उद्यमशील है, सुयदेवया वि = श्रुतदेवता भी; पंकय = पंकज; पुत्थम = पुस्तक; मणिरयण भूसिय कराए = मणिरत्नों से भूषित हाथ; वेयावच्चगराणं = सेवा शुश्रूषा करने वाले वैयावृत्य देव भी; मे इमो धूओ = यह धूप मेरा; समुद्धओ = समुद्धार करे। अनुवाद : समस्त घनघाती कर्मों के बन्धन से मुक्त केवलज्ञानी भगवंतों को, उसी तरह पंचविध आचार के पालन में निरत (तत्पर) आचार्यों को तथा उपाध्यायों को, ध्यान और योग में जो सदैव तल्लीन (निरत) हैं, तप से जिनका शरीर सूख गया है तथा सिद्ध-वधु को प्राप्त करने में जो सदा उद्यमशील हैं ऐसे साधुओं को मणिरत्नों से विभूषित कोमल कमलों पर स्थित पुस्तक युक्त श्रुतदेवता को एवं जिनशासन की सेवा में निरत शासन देवता को समर्पित यह धूप मेरा समुद्धार करे ।। ११-१३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525025
Book TitleSramana 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy