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धूमावली प्रकरण : ६१
असुरिंदसुरिंदाणं विज्जाहरियसुराणं मुणियपरमत्थवित्थर - विगिट्ठविविहतवसोसियंगाणं । सिद्धिवहुनिब्भरुक्कंठियाण जोगीसराणं च ।। २ ।। जे पुज्जा भगवंतो तित्थयरा रागदोसतमरहिया । विणयपणएण तेसिं समुद्धओ मे इमो धूओ ॥ ३ ॥
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असुरिंदसुरिंदाणं = असुरेन्द्र सुरेन्द्र को; किन्नरगंधव्वचंदसूराणं = किन्नर, गंधर्व, चन्द्र, सूर्य को; विज्जाहरियसुराणं = विद्याधर देव को; सजोगसिद्धाण सयोगी केवली; सिद्धाणं सिद्ध भगवन्तों को; मुणियपरमत्थवित्थर = विस्तृत परमार्थ के ज्ञाता; विगिट्ठ विकृष्ट, उत्कृष्ट, विविहतव विविध तप; सोसियंगाणं शोषित अंगों वाले; च = और सिद्धिवहु सिद्ध वधु; निब्भरु = भरपूर; उक्कंठियाण = उत्कंठित हृदय वाले; जोगीसराणं = योगीश्वरों को; जे पुज्जा भगवंतो तित्थयरा जो पूज्य तीर्थङ्कर भगवंत हैं; रागदोसतमरहिया राग-द्वेष रूपी अंधकार से रहित; तेसिं = उनको; विणयपणएण = विनययुक्त होकर नमस्कार करता हूँ; इमो समुद्धुओ मे धूओ = यह धूप मेरा उद्धार करे ।
'धूमावली' - प्रकरणम्
किन्नरगंधव्वचंदसूराणं । सजोगसिद्धाण सिद्धाणं ।। १ ।।
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अनुवाद : असुरेन्द्र, सुरेन्द्र, किन्नर, गंधर्व, चन्द्र, सूर्य, विद्याधर देव सयोगी केवली तथा सिद्ध भगवंतों को इसी प्रकार विस्तृत परमार्थ के ज्ञाता, उत्कृष्ट विविध तपों से शोषित अंगों वाले, सिद्धि रूपी वधु को प्राप्त करने में भक्ति से भरपूर उत्कंठित हृदय वाले मुनि योगीश्वरों को तथा रागद्वेषरूपी अन्धकार से रहित जो पूज्य तीर्थङ्कर भगवंत हैं, उनको मैं विनययुक्त होकर नमस्कार करता हूँ। यह धूप मेरा समुद्धार करे ।। १-३ ।।
तित्थंकरपडिमाणं कंचणमणिरयणविद्दुममयाणं । तिहुअणविभूसगाणं सासय- सुरवरकयाणं च ॥ ४ ॥ चमरबलिप्पमुहाणं भवणवईणं विचित्तभवणेसु । जाओ य अहोलोए जिणिंदचंदाण पडिमाओ ।। ५ ।। जाओ य तिरियलोए किन्नरकिंपुरिसभूमिनयरेसु । गंधव्वमहोरगजक्खभूय तह (य) रक्खसाणं च ।। ६ ।। जाओ य दीवपव्वय - विज्जाहरपवरसिद्धभवणेसु । चंदसूरगहरिक्ख-तारगाणं
तह
विमा ।। ७ ।।
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