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४६ : श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९६
७६. जैन दर्शन में धर्म को कई तरह से परिभाषित किया गया है। कहा गया है कि
वास्तव में चारित्र ही धर्म है और यह धर्म समत्व है। समत्व, मोह और क्षोभ से रहित आत्मा का निर्मल परिणाम है। इतना ही नहीं, समता, माध्यस्थभाव, शुद्धभाव, वीतरागता, चारित्र, धर्म और स्वभाव-आराधना - ये सभी शब्द
एकार्थक हैं। वही, २७४-२७५ ७७. वही, ६२१ ७८. आयारो, ५. १४० ७९. वही, ५. १२३-१२६ ८०. वही, ५. १२७-१३१ ८१. वही, ५. १३२-१३४ ८२. वही, ५. १३५ ८३. वही, ५. १३७-१३९ ८४. समणसुत्तं, ६१७-६१९ ८५. वही, ६२० ८६. वही, ६८४ ८७. वही, पृ० २६६ (पारिभाषिक शब्दकोश) ८८. वही, ५९५ ८९. वही, ६१४
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