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________________ जैन दर्शन में पुरुषार्थ चतुष्टय : २७ जाए ? जैनधर्म में अपने कर्तव्य का भली-भाँति निर्वाह करने के लिए कि जिससे सम-आचरण सुनिश्चित हो सके दस निष्ठाओं का निर्धारण किया गया है। स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा की ४७८वीं गाथा में से एक सूत्र, 'धम्मो वत्थुसहावो' का सन्दर्भ हम पहले ही दे आये हैं। गाथा की पूरी प्रथम पंक्ति इस प्रकार है - धम्मो वत्थुसहावो, खमादि भावो य दस विहो धम्मो। अर्थात् धर्म से आशय जहाँ वस्तु के स्वभाव से है, वहीं क्षमा आदि दस भाव भी धर्म हैं। क्षमा आदि ये दस भाव क्या हैं ? उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिञ्चन्य तथा उत्तम ब्रह्मचर्य -- ये दस धर्म गिनाए गये हैं। ये सभी दस धर्म वस्तुतः वे कर्तव्य हैं जिनके निर्वाह से मनुष्य अपने स्व-भाव में स्थित हो सकता क्षमा मूलतः अक्रोध है। क्रोध भावनात्मक रूप से मनुष्य की एक विचलित अवस्था है। इस विचलन से स्वयं को बचाकर ही व्यक्ति शान्ति प्राप्त कर सकता है। जो क्रोध से तप्त नहीं होता, वही निर्मल क्षमा भाव रखता है।२२ क्षमा में मैत्री भाव भी निहित है। जो सभी प्राणियों से मैत्री रखता है और किसी से वैर नहीं करता, वही क्षमा भी कर सकता है।२३ ।। चित्त में मृदुता और व्यवहार में नम्र वृत्ति का होना मार्दव धर्म है। वस्तुओं की नश्वरता का विचार करके ही व्यक्ति अपने अभिमान और गर्व को समाप्त कर सकता है। कुल, रूप, जाति, ज्ञान, तप, श्रुत और शील का तनिक भी गौरव न करना ही मार्दव धर्म है। __ कुटिलता का परित्याग और सहज आचरण ही आर्जव है। अपने दोषों को छिपाए बिना कुटिल विचारों, कुटिल कार्यों और कुटिल वचनों से बचना आर्जव धर्म है।२५ शौच से तात्पर्य वस्तुत: अलोभ से है। जिसमें किसी वस्तु के लिए लिप्सा नहीं है, वही सच्चा शौच कर्म का पालन करता है। कहा गया है कि जो समसन्तोष रूपी जल से लोभ-रूपी मल को धो देता है और भोजन तक की लिप्सा जिसमें नहीं रहती, वह विमल शौच का पालन कर पाता है।६ दूसरों को सन्ताप पहुँचाने वाले वचनों का त्याग करके जो स्व पर हितकारी वचन बोलता है, वह सत्य धर्म का पालन करता है। निःसन्देह यथार्थ वचन बोलना ही सत्य है किन्तु साथ ही सत्य वचन हितकारी भी होना ही चाहिए। मन, वचन और काय का नियमन करना, अर्थात् विचार, वाणी, गति और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525025
Book TitleSramana 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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