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________________ ८४ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९५ न्यायावतार जैन न्याय का प्रथम ग्रन्थ है । यह आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की कृति मानी जाती है। पं० सुखलाल जी संघवी द्वारा इस ग्रंथ की गुजराती व्याख्या तथा इसके प्रारम्भ में उनकी विस्तृत प्रस्तावना से युक्त यह कृति निश्चित ही जैन प्रमाणशास्त्र के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण अवदान है। प्रस्तावना में पं० सुखलाल जी संघवी द्वारा जैन न्याय की विकास-यात्रा का जो चित्रण है वह अत्यन्त मूल्यवान है तथा अनुसन्धाताओं के लिए उपयोगी है। यह ग्रन्थ पर्याप्त समय से अनुपलब्ध था। शारदाबेन चिमनभाई एजुकेशनल रिसर्च सेण्टर के निदेशक, डॉ० जितेन्द्र बी० शाह ने इसका पुनः प्रकाशन करके एक उत्तम कार्य किया है । उन्होंने अपने प्रकाशकीय में यह उल्लेख किया है कि न्यायावतार के कर्तृत्व के विषय में कुछ नवीन संशोधन हुए हैं विशेष रूप से प्रो० मधुसूदन ढाकी ने इसे सिद्धसेन दिवाकर के स्थान पर अन्य सिद्धसेन की कृति माना है किन्तु प्रो० ढाकी का यह निष्कर्ष भी अनेक दृष्टियों से समुचित प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि 'अभ्रान्त' पद का उपयोग धर्मकीर्ति के पूर्व भी बौद्ध न्याय में था यह सिद्ध हो चुका है। अतः उसके आधार पर न्यायावतार को अन्य सिद्धसेन की कृति मानना उचित नहीं है। दूसरे न्यायावतार में स्मृति, प्रत्यभिज्ञा और तर्क के प्रमाणों का अनुल्लेख और अकलंक के काल से उनका उल्लेख यही सिद्ध करता है कि न्यायावतार सिद्धसेन दिवाकर की ही कृति है । पुनः इससे पं० सुखलाल जी के मत की पुष्टि भी हो जाती है। यदि ग्रन्थ के परिशिष्ट में इन मन्तव्यों को भी जोड़ दिया जाता तो ग्रन्थ की महत्ता बढ़ जाती । मुद्रण सुन्दर और निर्दोष है इस हेतु हम प्रकाशक संस्था को और उसके निदेशक डॉ० जितेन्द्र बी० शाह को धन्यवाद देते हैं। पुस्तक - स्वधर्म और कल्पनायोग लेखक - सुरेश सोमपुरा, हिन्दी अनुवाद त्रिवेणी प्रसाद शुक्ल प्रकाशक स्वधर्म समिधा ट्रस्ट, १४ योगायोग, पी० एम० रोड, विलेपार्ले (ईस्ट), बम्बई - ४०० ०५७ १९६५ आकार प्रथम आवृत्ति मूल्य ३५.०० रुपया -- - - Jain Education International - - गुजराती साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार, विचारक और तत्त्वचिंतक सुरेश सोमपुरा जी विरचित स्वधर्म और कल्पनायोग नामक कृति का हिन्दी अनुवाद श्री त्रिवेणी प्रसाद जी शुक्ल ने बड़े ही सुन्दर ढंग से किया है। इस पुस्तक में स्वधर्म, कल्पनायोग, धर्म, मन, मानसिक शक्ति और चमत्कार, डिमाई पेपरबैक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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