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________________ पुस्तक समीक्षा : ८५ व्यावहारिक कल्पनायोग, आत्मा, आस्तिक, आत्मश्रद्धा, कर्म, ब्रह्मचर्य, प्रार्थना, स्त्री पुरुष और मुक्ति - इस प्रकार चौदह शीर्षकों में प्रश्नोत्तर विधि के माध्यम से मनुष्य के जीवन के जटिल प्रश्नों को सरलविधि से समझाया गया है। आज तक मनुष्य ने मनुष्यत्व-ईश्वरत्व प्राप्त करने के लिए केवल शरीर और बुद्धि का उपयोग किया है, मन और मन की शक्तियों की उसने उपेक्षा की है। इसीलिये वह ईश्वरत्व से दूर रहा है। इस पुस्तक का प्रतिप्राद्य यह है कि स्वधर्म और कल्पनायोग -- मनुष्यत्व और मन की शक्ति द्वारा ईश्वरत्व प्राप्त करने का सरल उपाय है। यह जन-सामान्य के लिए अत्यन्त लाभकारी एवं उपयोगी है जो जीवन जीने की एक नई विधा उपस्थित करती है। मुद्रण सुन्दर है और साजसज्जा आकर्षक है। पुस्तक संग्रहणीय एवं पठनीय है। - श्री असीम कुमार मिश्र विद्याष्टकम् – रचयिता मुनि श्री नियमसागर जी, पद्यानुवादकर्ता - ऐलक श्री सम्यक्त्व सागर जी सम्पादक - डॉ० प्रभाकर नारायण कवठेकर, प्रकाशक- प्रदीप कटपीस, अशोक नगर, म० प्र० प्रथम संस्करण - १६६४ आकार - क्राउन आठपेजी मूल्य - १००.०० रुपये। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री नियम सागर जी महाराज द्वारा रचित विद्याष्टकम् आधुनिक युग के संस्कृत साहित्य की एक अनन्यतम कृति है। इस कृति में जहाँ एक ओर रचयिता का वैदुष्य झलकता है वहीं दूसरी ओर अद्वितीय कला-प्रदर्शन और चिन्तन की गहराई मन को झकझोर देती है। कारण यह है कि उक्त काव्य एक चित्रकाव्य है और चित्रकाव्य की विशेषता यह होती है कि उसमें चित्र के अन्तर्गत ही काव्य प्रतिष्ठित होता है। संस्कृत चित्रकाव्य की परम्परा अपनी क्लिष्टता और दुरूहता के कारण लगभग समाप्त सी हो गयी थी। इस युग में लगभग एक शताब्दी पूर्व स्थानकवासी जैन मुनेि पूज्य त्रिलोक ऋषि जी महाराज द्वारा चित्रकाव्य की परम्परा पुनर्जीवित हुई। इसी क्रम में सम्प्रति मुनि श्री नियमसागर जी की यह रचना है। यह काव्य केवल आठ पद्यों का है और आठों श्लोक ( अनुष्टुप) छन्द में हैं। इसके प्रत्येक चरण में आट अक्षर होते हैं। इस प्रकार इस लघुकाय काव्य में मुनि श्री ने ऐसा चमत्कार भरा है जो आधुनिक कवियों के लिये एक चुनौती है। इसका हिन्दी पद्यानुवाद ऐलक श्री सम्यक्त्व सागर जी ने किया है। काव्य का एक अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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