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द्रौपदी कथानक का तुलनात्मक अध्ययन : ८१
द्वारा सन्धि में दोष निकालने पर द्वारिका जाना, तो कहीं विराटनगर से ही उनके द्वारिका एवं कुछ समय पश्चात् होने वाले कृष्ण-जरासन्ध युद्ध में श्रीकृष्ण के पक्ष में हो, जरासंध पक्ष से आये कौरवों से युद्ध का वर्णन है। कुछ जैन ग्रन्थ महाभारत के समान ही कौरवों-पाण्डवों के मध्य युद्ध का वर्णन करते हैं। वैदिक परम्परा में युद्ध में पाण्डवों की विजय और हस्तिनापुर राज्य की प्राप्ति का वर्णन है, किन्तु जैन ग्रन्थों में श्रीकृष्ण की विजय के पश्चात् वे पाण्डवों को हस्तिनापुर का राज्य प्रदान करते हैं, तो कछ ग्रन्थों में पाण्डव मथुरा के स्वामी बनते हैं।
(च) इसके अतिरिक्त द्रौपदी वृत्तान्त से सम्बन्धित कुछ प्रसंग केवल जैन ग्रन्थों में ही प्राप्त होते हैं। जैसे -- नागश्री और सुकुमालिका सहित उसके अनेक पूर्वभव, वैदिक परम्परा में अनुपलब्ध हैं। कुछ जैन ग्रन्थों में द्रौपदी-पाण्डव विवाह के पश्चात् पाण्डु राजा द्वारा किया जाने वाला हस्तिनापुर में कल्याणकरक महोत्सव और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, वनवास की अवधि में धर्मदेव द्वारा द्रौपदी हरण। इसके साथ ही द्रौपदी के महल में नारद-आगमन, द्रौपदीकृत नारद की अवहेलना, अमरकंका के राजा पद्मनाभ को द्रौपदी हरण के लिये प्रेरित करना एवं इससे सम्बन्धित सभी घटनाओं का महाभारत में अभाव है। द्रौपदी द्वारा दीक्षा-ग्रहण एवं तप करते हुए मृत्यु तथा भावी जीवन में स्त्रीपर्याय का नाश कर देव बनने का उल्लेख मिलता है। (छ) द्रौपदी का व्यक्तित्व
___ वैदिक परम्परा में द्रौपदी का चरित अत्यन्त गरिमामय एवं प्रभावोत्पादक है। वह एक सशक्त नारी के रूप में हमारे सम्मुख आती है। यहाँ तक कि महाभारत युद्ध में ( जो धर्म और अधर्म का प्रतीक माना जाता है ) द्रौपदी के अपमानजनित प्रतिशोध की भावना सर्वत्र ध्वनित होती है। वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में चित्रित उसके व्यक्तित्व के प्रमुख पक्षों को इस प्रकार इंगित किया जा सकता है --- ..
__ स्वाभिमान द्रौपदी के व्यक्तित्व का प्रमुख गुण है। वह पुत्री, भगिनी, भार्या एवं जननी सभी रूपों में स्वाभिमानिनी परिलक्षित होती है। वह एक अत्यन्त विदुषी महिला है, जो उसकी उक्तियों, नीतिगत बातों, द्यूतभवन आदि अनेक प्रसंगों पर उसकी विद्वत्तापूर्ण एवं तर्कसंगत बातों से स्पष्ट होता है। वह सही अर्थों में सहचारिणी है एवं पतिव्रता के सभी गुण से युक्त है। वह अत्यन्त सेवा भावी है, आत्मीयजनों की सेवा को प्रथम स्थान देती है। महाभारत में वह सत्यवादिनी एवं स्पष्टवक्ता के रूप में प्रतिष्ठित है। वह महत्त्वाकांक्षिणी महिला है। नियति से हारकर वह कभी चुप बैठने वाली नारी नहीं है। वह सदा पाण्डवों को उद्यम के लिये प्रेरित करती रहती है। उसका हृदय अत्यन्त विशाल है। वह सपत्नी सुभद्रा को भी बहन की तरह स्नेह देती है और अभिमन्यु को पुत्रवत्
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