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________________ ८० : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९५ महाभारत के एक चक्र के स्थानपर इसमें बाईस चक्रों के घूमने का उल्लेख मिलता है। स्वयंवर में पाण्डव आगमन - वैदिक परम्परा में लाक्षागृह से बच निकलकर पाण्डव, ब्राह्मणवेश में उपस्थित होते हैं, किन्तु जैनपरम्परा में कुछ ग्रन्थों में पाण्डु राजा के साथ राजकुमार के रूप में, तो कुछ ग्रन्थों में उनके ब्राह्मणवेश में ही आने का उल्लेख मिलता है। वैदिक परम्परा में द्रौपदी केवल अर्जुन का वरण करती है किन्तु बाद में, कुन्ती के आदेश पर पाँचों पाण्डवों से विवाह होता है, जबकि जैनपरम्परा में अर्जुन के गले में पहनायी गयी माला दैवयोग से टूटकर पाँचों पाण्डवों के गले में पड़ती है, तो कहीं पाँचों पाण्डवों के गले में वह दिखलाई पड़ती है तथा कहीं पाँचों को वह पूर्वभव के निदान के कारण वेष्टित करती है। द्रुपद के चिन्ता का निवारण - महाभारत में अनहोनी घटना ( माता की आज्ञापालन हेतु पाँचों पाण्डवों द्वारा द्रौपदी को पत्नी रूप में स्वीकार करने के निर्णय ) से चिन्तित द्रुपद को व्यास मुनि सान्त्वना देते हैं, किन्तु जैनपरम्परा में चारण मुनि द्रौपदी के पूर्वभवों का वृत्तान्त सुनाकर, उन्हें चिन्तामुक्त करते हैं। पति-सान्निध्य --- महाभारत में प्रत्येक पति के साथ एक-एक वर्ष का समय नियत है, किन्तु कुछ जैन ग्रन्थों में प्रत्येक के साथ एक-एक दिन का समय और कुछ ग्रन्थों में प्रत्येक के लिए एक-एक वर्ष का समय निश्चित है। पुत्रों की संख्या के विषय में वैदिक परम्परा में सामान्य रूप से एवं जैन परम्परा के कुछ ग्रन्थों में द्रौपदी को प्रत्येक पति से एक-एक पुत्र होने का निर्देश मिलता है। इस प्रकार पाँच पुत्र हुए और भिन्न-भिन्न नामों के होते हुए भी सभी पाञ्चाल कहे गये, जबकि जैन परम्परा में प्रायः एकमात्र पुत्र ‘पाण्डुसेन' है। कुछ जैन ग्रन्थों में पाञ्चालों की मृत्यु के पश्चात् पुनः एक पुत्रोत्पत्ति वर्णित है। महाभारत एवं कुछ जैन ग्रन्थों में वनवास से सम्बद्ध द्वैवतन, काम्यकवन एवं गन्धमादन पर्वत का उल्लेख हुआ है, परन्तु निवास के क्रम में अन्तर है, तो कुछ जैन ग्रन्थों में कालाजला वन, रामगिरि पर्वत, दण्डक वन, कालिंजर आदि वनों के नाम प्राप्त होते हैं। महाभारत के जटासुर द्वारा द्रौपदी के हरण का वृत्तान्त जैन परम्परा में अनुपलब्ध है। वैदिक परम्परा में द्रौपदी सत्यभामा संवाद वनवास की अवधि में काम्यक वन में होता है, जबकि जैन-ग्रन्थों में अज्ञातवास के पश्चात् विराटनगर से वापस होते हुए, द्वारिकागमन के समय है। महाभारत में भीम द्वारा कीचक वध हुआ, जबकि कुछ जैन ग्रन्थों में उसे जीवनदान देने का वृत्तान्त वर्णित है। उपकीचकों की संख्या महाभारत में १०५ है। कुछ जैन ग्रन्थों में भी वह १०५ ही है, किन्तु कुछ में १०० है। महायुद्ध - वैदिक परम्परा के अनुसार अज्ञातवास सहित वनवास का समय बीत जाने पर दुर्योधन द्वारा राज्य न दिये जाने पर पाण्डव युद्ध की भूमिका बनाते हैं, किन्तु जैन ग्रन्थों में कहीं पाण्डवों द्वारा बिना युद्ध किये ही हस्तिनापुर में आधा राज प्राप्त करना और पुनः दुर्योधन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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