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________________ द्रौपदी कथानक का तुलनात्मक अध्ययन : ७९ बिन्दुओं को इस प्रकार इंगित किया जा सकता है --- पाण्डवों का गृहनगर हस्तिनापुर ( हस्तिनागपुर ), द्रौपदी के पिता द्रुपद, भाई धृष्टद्युम्न एवं शिखण्डी ( अपवाद रूप में कुछ स्थानों पर केवल धृष्टद्युम्न एवं कहीं अनेक भाई ), स्वयंवर विधि से विवाह, अर्जुन द्वारा लक्ष्यवेध प्रायः स्वयंवरागत अन्य राजाओं और ब्राह्मणवेशीय पाण्डवों से युद्ध, द्रौपदी के पाँच पति ( कुछ जैन ग्रन्थों में एकमात्र अर्जुन ) दोनों परम्पराओं में समान रूप से वर्णित हैं। द्यूत-क्रीड़ा, द्रौपदी-अपमान, वनवास एवं अज्ञातवास की अवधि (अपवादस्वरूप एक जैन ग्रन्थ में १२ वर्ष का गुप्तवास), अज्ञातवास के स्थल के रूप में विराटनगर, द्रौपदी का सैरन्ध्री के रूप में अज्ञातवास व्यतीत करना, कीचक वृत्तान्त और युद्धभूमि के रूप में कुरुक्षेत्र दोनों परम्पराओं में समान हैं। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य घटनाएँ भी दोनों परम्पराओं में समान हैं, जैसे ... किर्मीरवध, हिडिम्बवध, बकवध, जयद्रथ द्वारा द्रौपदीहरण, भीम द्वारा सौगन्धिक पुष्प लाकर द्रौपदी को देना आदि। (ङ) वैषम्य दोनों परम्पराओं में वर्णित भिन्नता के अध्ययनक्रम में हमने पहले महाभारत के वृत्तान्त का उल्लेख कर फिर जैन परम्परा में उससे भिन्नता दर्शायी महाभारत में द्रौपदी जन्म का प्रयोजन क्षत्रियवंश संहार वर्णित है, किन्तु जैन-परम्परा में नागश्री और सुकुमालिका के रूप में किये गये कर्मों का फल भोग है। जन्म - द्रौपदी अयोनिजा कन्या है, जो द्रुपद द्वारा कराये जा रहे यज्ञ की वेदी से उत्पन्न हुई है, जबकि जैन-ग्रन्थों में माता की कुक्षि से उत्पन्न दिखलाई गई है। महाभारत में द्रौपदी का जम्नस्थल पाञ्चाल देश है, जबकि जैनग्रन्थों में 'काम्पिल्यपुर' या 'माकन्दीनगरी है। महाभारत में द्रौपदी की माता के नाम का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, जबकि जैन-परम्परा में चुलनी देवी, भोगवती और दृढ़ रथा - ये तीन नाम विभिन्न ग्रन्थों में मिलते हैं। वैदिक परम्परा में द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न एवं शिखण्डी हैं जबकि जैन-परम्परा में कहीं धृष्टद्युम्न एवं शिखण्डी, तो कहीं अकेला भाई धृष्टद्युम्न, तो कहीं धृष्टद्युम्न के साथ अनेक भाइयों का भी उल्लेख मिलता है। वैदिक परम्परा में भगवान शिव के वरदान से द्रौपदी को पाँच पतियों की प्राप्ति का संकेत है, किन्तु जैन परम्परा में पूर्वभव में किये गये निदान के कारण द्रौपदी के पाँच पति प्राप्त होते हैं। स्वयंवर शर्त के लिये दोनों परम्पराओं में लक्ष्यवेध की घटना उल्लिखित है। किन्तु जैन परम्परा में राधावेध और चन्द्रकवेध की प्रक्रिया अत्यन्त जटिल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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