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________________ नागेन्द्रगच्छ का इतिहास : २५ सन् १२०८ ) के रचनाकार देवेन्द्रसूरि और वासुपूज्यचरित ( रचनाकाल वि० सं० १२६६/ई० सन् १२४३ ) के रचनाकार वर्द्धमानसूरि ने उक्त कृतियों की प्रशस्तियों में नागेन्द्रगच्छ, जिससे वे सम्बद्ध थे, अपनी विस्तृत गुरु-परम्परा दी है जो इस प्रकार है - वीरसूरि वर्धमानसूरि रामचन्द्रसूरि चन्द्रसूरि देवसूरि अभयदेवसूरि धनेश्वरसूरि विजयसिंहसूरि देवेन्द्रसूरि ( वि० सं० १२६४/ई०सन् १२०८ में चन्द्रप्रभचरित के रचनाकार ) वर्धमानसूरि (द्वितीय) (वि० सं० १२६६/ ई० सन् १२४३ में वासुपूज्यचरित के रचनाकार ___ अजाहरा पार्श्वनाथ जिनालय के निकट से कुछ साल पूर्व धातु की कुछ भूमिगत जिन-प्रतिमायें प्राप्त हुई थीं। इस संग्रह में शीतलनाथ की भी एक सलेख प्रतिमा है, जिस पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार नागेन्द्रगच्छीय विजयसिंहसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि ने वि० सं० १३०५/ई० सन् १२४६ में इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी। श्री शिवनारायण पाण्डेय ने इस प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख की वाचना दी है जिसे प्राध्यापक मधुसूदन ढांकी ने संशोधन के साथ प्रस्तुत किया है३५ जो इस प्रकार है - संवत् १३०५ ज्येष्ठ वदि ८ शने श्री प्राग्वाटान्वये विवरदेव मंत्रिणी महाणु श्रेयोऽथ सुत मण्डलिकेन श्री शीतलनाथ बिबं कारितं श्रीनागेन्द्रगच्छे श्रीवीरसूरिसंताने श्रीविजयसिंहसूरिशिष्यैः श्रीवर्धमानसूरिभिः प्र (ति) ष्ठितम् ।। ये वर्धमानसूरि वासुपूज्यचरित के कर्ता से अनन्य मालूम होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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