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________________ २४ : श्रमण/ जुलाई-सितम्बर/१९९५ और 'सिंह शिशुक' की उपाधि प्रदान की थी क्योंकि उन्होंने बाल्यावस्था में ही प्रतिवादियों को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। अमरचन्द्रसूरि के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने सिद्धान्तार्णव की रचना की थी। इनके शिष्य हरिभद्रसूरि हुए जो अपने अमोघ देशना के कारण 'कलिकालगौतम' के नाम से विख्यात थे। हरिभद्रसूरि के शिष्य विजयसेनसूरि हुए जो महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल के पितृपक्ष के कुलगुरु थे। धर्माभ्युदय महाकाव्य के रचनाकार उदयप्रभसूरि इन्हीं के शिष्य थे।६ वि० सं० १३०२/ई० सन् १२४६ के एक प्रतिमालेख में विजयसेनसूरि के एक अन्य शिष्य यशो ( देव ) सूरि का भी उल्लेख मिलता है। पुरातन प्रबन्ध संग्रह ( रचनाकाल ई० सन् की १५वीं शताब्दी ) के अन्तर्गत एक प्रशस्ति के अनुसार उदयप्रभसूरि के शिष्य जिनभद्रसूरि ने वि० सं० १२६०/ई० सन् १२३४ में नानाकथानकप्रबन्धावली की रचना की।३१ महेन्द्रसूरि शान्तिसूरि आनन्दसूरि ( व्याघ्र शिशुक ) | अमरचन्द्रसूरि ( सिंह शिशुक ) हरिभद्रसूरि ( कलिकालगौतम ) विजयसेनसूरि ( महामात्य वस्तुपाल के गुरु) यशो ( देव ) सूरि (वि० सं० १३०२ ) प्रतिमालेख उदयप्रभसूरि (धर्माभ्युदयमहाकाव्य तथा अनेक कृतियों के रचनाकार ). जिनभद्रसूरि (वि० सं० १२६०/ई० सन् १२३४ में नाना कथानकप्रबन्धावली के रचनाकार ) साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा नागेन्द्रगच्छ की एक दूसरी शाखा का भी पता चलता है। चन्द्रप्रभचरित ( रचनाकाल वि० सं० १२६४/ई० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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