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________________ 34 : डॉ० कुमुदगिरि पार्श्वनाथ की मूर्तियों में शंबर ( कमठ या मेघमाली ) के विस्तृत उपसर्गों के अंकन स्पष्टतः महापुराण के उल्लेखों से निर्दिष्ट रहे हैं। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन में ऐतिहासिक दृष्टि से कालक्रम की मर्यादा का ध्यान रखते हुए महापुराण की कलापरक सामग्री का एकशः विशद विवेचन प्रस्तुत किया गया है और आवश्यकतानुसार उस सामग्री की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा के अन्य जैन ग्रन्थों तथा विभिन्न पुरास्थलों, विशेषतः एलोरा की मूर्त सामग्री से तुलना भी की गई है, जिससे महापुराण की कलापरक सामग्री का स्वरुप एवं व्यावहारिक महत्व दोनों स्पष्ट हो सके। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध 9 अध्यायों में विभक्त है। प्रस्तावना विषयक प्रथम अध्याय में पूर्व कार्यों की विवेचना एवं अध्ययन के साथ ही महापुराण की विषय- सामग्री तथा उसके रचनाकार जिनसेन एवं गुणभद्र के जीवन परिचय, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और समय पर विचार किया गया है 1 दूसरे अध्याय में जैन देवकुल का अध्ययन हुआ है जिसमें मुख्यतः 8वीं शती से 12 वीं शती ई0 के मध्य जैन देवकुल में सम्मिलित 63 शलाकापुरुषों एवं अन्य देवों के नामों एवं उनके लाक्षणिक स्वरुपों का उल्लेख हुआ है। प्रस्तुत अध्ययन द्वारा महापुराण में जैन देवकुल के विकास की पृष्ठभूमि को अधिक स्पष्टतः समझा जा सकता है। पूर्णविकसित जैन देवकुल में 63 शलाकापुरुषों के अतिरिक्त 24 तीर्थंकरों के यक्ष - यक्षी युगलों, विद्याधर, अष्टदिक्पाल, नवग्रह, लक्ष्मी, सरस्वती, नैगमेष, इन्द्र, ब्रह्मशान्ति एवं कर्पदी यक्ष और गणेश जैसे देवी- देवता सम्मिलित थे । लगभग 12 वीं शती ई० तक जैन देवकुल के देवताओं के विस्तृत लक्षण भी नियत किये जा चुके थे और तदनुरूप देवगढ़, खजुराहो, मथुरा, बिलहरी, खण्डगिरि, उड़ीसा, राजगिर, एलोरा, हुम्चा, हलेबिड, असिकेरी, श्रवणबेलगोल जैसे दिगम्बर एवं ओसियाँ, दिलवाड़ा, कुम्भारिया, तारंगा जैसे श्वेताम्बर स्थलों पर विभिन्न देव स्वरुपों का निरुपण हुआ । साहित्य और शिल्प के आधार पर 24 तीर्थंकरों के बाद यक्षी, विद्यादेवी, लक्ष्मी, सरस्वती आदि के रुप में देवियों को ही सर्वाधिक प्रतिष्ठा दी गयी, जो शक्ति और तांत्रिक पूजन से प्रभावित प्रतीत होता है। तीसरे से छठें अध्यायों में जैन महापुराण के आधार पर 24 तीर्थंकरों एवं अन्य शलाकापुरुषों, यक्ष-यक्षी और विद्यादेवी तथा अन्य देवी-देवताओं का उल्लेख किया गया है और एलोरा तथा आवश्यकतानुसार खजुराहो, देवगढ़, दिलवाड़ा, कुम्भारियाँ एवं कुछ अन्य स्थलों की मूर्तियों से उनकी तुलना भी की गयी है। तीर्थंकरों से सम्बन्धित तीसरे अध्याय में क्रम से 24 तीर्थंकरों का उल्लेख हुआ है। 24 तीर्थंकरों में ऋषभनाथ को सर्वाधिक महत्व दिया गया है, जिनके बाद पार्श्वनाथ और तत्पश्चात् नेमिनाथ और महावीर का विस्तारपूर्वक उल्लेख हुआ है। अन्य तीर्थंकरों की चर्चा संक्षेप में की गयी है। तीर्थंकरों के सन्दर्भ में मुख्यतः पंचकल्याणकों ( च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण ) एवं ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और महावीर के सन्दर्भ में उनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525020
Book TitleSramana 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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