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________________ जैनमहापुराण : एक कलापरक अध्ययन : 35 जीवन की कुछ विशिष्ट घटनाओं का भी विस्तारपूर्वक उल्लेख हुआ है। ऋषभनाथ के प्रसंग में भरत और बाहुबली के युद्ध, बाहुबली की कठिन साधना और कालान्तर में भरत चक्रवर्ती के भी संसार त्यागने, नेमिनाथ के सन्दर्भ में कृष्ण की आयुधशाला में नेमि के शौर्य-प्रदर्शन तथा पिजड़े में बन्द विभिन्न पशुओं की भोजन के लिये आसन्न हिंसा के फलस्वरुप अविवाहित रुप में संसार त्यागने एवं पार्श्वनाथ की तपस्या के समय पूर्वजन्म के वैरी कमठ (शंबर) द्वारा उपस्थित उपसर्गों और महावीर की तपश्चर्या के समय संगमदेव, शूलपाणि यक्ष आदि के उपसर्गों से सम्बन्धित उल्लेख कलापरक अध्ययन की दृष्टि से विशेषतः महत्त्वपूर्ण हैं। पाँचवाँ अध्याय यक्ष- यक्षी एवं विद्यादेवी से सम्बन्धित है। यह सर्वथा आश्चर्यजनक है कि महापुराण में यक्ष-यक्षी का कोई उल्लेख नहीं हुआ है। केवल महापुराण ही नहीं वरन दिगम्बर परम्परा के अन्य पुराणों में भी यक्ष यक्षी का अनुल्लेख ध्यातव्य है। दूसरी ओर श्वेताम्बर परम्परा के 63 शलाकापुरुषों से सम्बन्धित चरित्र ग्रन्थों में यक्ष-यक्षी युगलों के प्रतिमा-निरुपण से सम्बन्धित विवरण मिलते हैं, जिसमें हेमचन्द्र त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र सर्वप्रमुख है। पउमचरिय एवं हरिवंशपुराण जैसे पूर्ववर्ती ग्रन्थों के समान ही उत्तर पुराण में भी विद्यादेवियों के अनेक उल्लेख मिलते हैं। उत्तरपुराण में कई अलग-अलग प्रसंगों में लगभग 50 विद्यादेवियों का नामोल्लेख हुआ है। जिनमें अधिकांश राम, लक्ष्मण, रावण, सुग्रीव और हनुमान द्वारा सिद्ध या प्राप्त है। लगभग दसवीं शती ई0 ( संहितानुसार एवं शोभनस्तुति ) में अनेक विद्याओं में से 16 प्रमुख महाविद्याओं को लेकर एक सूची नियत हुई, जिसमें उत्तरपुराण में उल्लिखित रोहिणी, गरुड़वाहिनी ( अप्रतिचक्रा ), सिंहवाहिनी ( महामानसी ), महाज्वाला, गौरी, मनोवेगा जैसी महाविद्याओं को सम्मिलित किया गया। दिगम्बर स्थलों पर खजुराहो के आदिनाथ जैन मंदिर के एकमात्र अपवाद के अतिरिक्त महाविद्याओं की मूर्तियाँ नहीं बनीं, जबकि गुजरात व राजस्थान के श्वेताम्बर स्थलों पर इन महाविद्याओं का अंकन सर्वाधिक लोकप्रिय विषय था। महापुराण में नारद, कामदेव, वामन, लक्ष्मी, सरस्वती, दिक्कुमारियों एवं नागदेवों के भी उल्लेख मिलते हैं। एलोरा की जैन गुफाओं में लक्ष्मी और पार्श्वनाथ की मूर्तियों में नागराज धरणेन्द्र के शिल्पांकन के अतिरिक्त इक्षुधनु और पुष्पशर से युक्त कामदेव की एक मूर्ति मिली । सातवें अध्याय में महापुराण में वर्णित स्थापत्यगत सामग्री का संक्षेप में उल्लेख किया गया है, जिसके अन्तर्गत जिनमन्दिरों, समवसरण, राजप्रासाद एवं सामान्य भवनों की चर्चा की गयी है। आठवें अध्याय में महापुराण में वर्णित सांस्कतिक जीवन के विविध पक्षों से सम्बन्धित सामग्री का सांगोपांग विवेचन किया गया है। सांस्कृतिक जीवन के विविध पक्षों, यथा -- शृंगार, नृत्य, गायन-वादन, वस्त्र एवं दैनिक उपयोग की सामग्रियों का विस्तृत उल्लेख For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.525020
Book TitleSramana 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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