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डॉ. (श्रीमती) विद्यावती जैन
HARHATHI
अध्याय बन गया है। कवि-परिचय :
'अद्यावधि अज्ञात कवि देवीदास का विस्तृत परिचय अनुपलब्ध है, किन्तु उनकी कृतियों के अन्तिम प्रशस्ति-पद्यों एवं पुष्पिकाओं में जो छुटपुट परिचय उपलब्ध है, उनके अनुसार वह "दिगौड़ा" (टीकमगढ़ : मध्यप्रदेश) नामक ग्राम के निवासी थे। वह ग्राम उस समय बुन्देला सावन्तसिंह नरेश के राज्य का अंग था।१ कुण्डलियाँ छन्द के माध्यम से उन्होंने अपने विषय में कहा है कि उनकी जाति गोलालारे (गोलाराड) थी।१२ उनका वंश खरौआ के नाम से प्रसिद्ध था।१३ "सोनबयार" उनका बैंक था।१४ उनका गोत्र कासल्ल था। उनका परिवार भदावर देश के "सीक सिकहारा" नामक ग्राम से "कैलगवाँ" (टीकमगढ़ के पास) नामक स्थान पर आ बसा।६ फिर आगे चलकर वह परिवार दिगौड़ा आकर रहने लगा।
देवीदास के पिता का नाम सन्तोष एवं माता का नाम मणि था। उनके छह भाई थे।६ देवीदास जेठे थे। बाकी के नाम इस प्रकार हैं : छगन, लल्ले, कमल, मरजाद गोपाल और गंगाराम । कवि के भाइयों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व का परिचय नहीं मिलता। केवल उनकी संख्या, नाम और स्थान का ही विवरण दिया है। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्वजन्म के संस्कारवश तथा किसी गुरु के उपदेश एवं निरन्तर स्वाध्याय के कारण देवीदास में कवित्व-शक्ति का स्फुरण हुआ था और उसी के बल पर उन्होंने अपनी रचनाएँ लिखी थीं।
कवि की आजीविका का प्रमुख साधन कपड़े का व्यापार था। वह बंजी२० करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे।२१ उनकी यह विशेषता थी कि हानि अथवा लाभ की स्थिति में वह समरस रहते थे। उनके जीवन में कुछ ऐसी मार्मिक घटनाएँ भी घटी थीं, जिनसे उनके जीवन की दृढ़ता, सच्चरित्रता एवं आत्मसंयम की कठोर परीक्षा हुई और वह उसमें खरे उतरे थे। इन सभी कारणों से तत्कालीन साहित्यिकों एवं सामाजिकों में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। बुन्देलखण्ड में आजकल भी एक रोचक किंवदन्ती प्रचलित है कि एक बार वह अपने छोटे भाई कमल के साथ उसके विवाह के लिए आवश्यक वस्तुएँ खरीदने हेतु ललितपुर (उत्तर-प्रदेश) जा रहे थे। रास्ते में घना जंगल पडता था, वहीं कहीं कमल पर एक शेर ने सहसा ही आक्रमण कर उसे मार डाला। इस अप्रत्याशित घटना ने कवि को झकझोर डाला, किन्तु शीघ्र ही उनका विवेक जागत हो गया और अपने को सम्बोधित किया कि "कर्मों" की गति विचित्र है, उसे कोई टाल नहीं सकता। तत्पश्चात् वह उसका दाह-संस्कार कर घर वापस आ गये।
स्नेहवश देवीदास अपने भाई कमल के लिए सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहते थे। सम्भवतः उसकी स्मृति को स्थायित्व देने के लिए ही वह जीवित रहे और अपनी साहित्यिक कृतियाँ लिखते रहें। अपने कमल की मृत्यु से दुःखी होकर वह कविताएँ रचते रहे। अपनी माँ को ढाढस बंधाने के लिए उन्होंने पुराणों के मार्मिक उदाहरणों की चर्चा करते हुए कहा : "हे माँ, देखों, संसार की गति कितनी विचित्र है। व्यक्ति जो सोचता है, वह नहीं हो पाता। मर्यादापुरुषोत्तम राम को कहाँ तो सबेरे उठते ही पृथ्वीमण्डल का चक्रवर्ती-पद प्राप्त करना था
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