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________________ हिन्दा जनसाहित्य का विस्मृत बुन्दला काव : दवादास वाराणसी के ग्रन्थागार में सुरक्षित है, जो अद्यावधि अप्रकाशित है। ये लघु कृतियाँ अत्यन्त सरस, मधुर एवं गेय है। 18वीं शती के अन्तिम चरण की बुन्देली-भाषा की दृष्टि से वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इनकी ज्ञात कृतियों की कुल संख्या 38 हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं : 1. परमानन्दस्तोत्र भाषा, 20. लछनाउली पथ, 2. जीवचुतुर्भेदादि बत्तीसी, 21. जोगपच्चीसी, 3. जिनांतराउली, 22. पदपंगति, 4. धरमपच्चीसी, 23. द्वादशभावना, 5. पंचपदपच्चीसी, 24. केवलज्ञान के दस अतिशय, 6. दशधा सम्यक्त्व, 25. उपदेशपच्चीसी, 7. पुकारपच्चीसी, 26. जन्म के दस अतिशय, 8. वीतरागपच्चीसी, 27. हितोपदेश, 9. दरसनछत्तीसी, 28. चक्रवर्तिविभूतिवर्णन, 10. बुद्धिवाउनी, 29. एकेन्द्रिय-सैनी-असैनी, 11. तीनि मूढ अरतीसी, 30. पदी, 12. देवकृत चौदह अतिशय, 31. जूववरा पद, 13. सीलांगचतुर्दशी, 32. पदावली 14. जुआवर्णन (सप्तव्यसन), 33. चतुर्विंशति जिनवन्दना, 15. विवेकबत्तीसी, 34. अंगपूजा, 16. स्वजोगराछरौ, 35. अष्टप्रातिहार्यपूजा, 17. मारीच भवांतराउली, 36. अनन्तचतुष्टयपूजा, 18. रागरागिनी, 37. अष्टादशदोषपूजा, 19. पंचवरन के कवित्त, 38. जिन नामावलि। देवीदास का रचनाकाल वही था, जो हिन्दी-साहित्य के इतिहास में रीतिकाल का समय माना गया है। उस समय "मनमथ नेजा नोंक सी"२ जैसी घोर श्रृंगारिक कविता के लिखने का बोलबाला था। उस विपरीत वातावरण में भी देवीदास ने अदम्य उत्साह के साथ अध्यात्म एवं भक्ति रस की जैसी अजस्र धारा प्रवाहित की, वह प्रशंसनीय है। आत्मचिन्तन एवं आत्मविकास के माध्यम से स्वस्थ समाज एवं राष्ट्रनिर्माण ही उनका प्रमुख लक्ष्य था। उन्होंने सत्यम्, शिवम् एवं सुन्दरम् के आदर्श को अपनी कविता के माध्यम से मुखरित करने का अथक प्रयास किया है। उन्होंने लोकहित की भावनाओं का गान करने में जहाँ एक ओर लोकसंगीत का आश्रय लिया, वहीं यमनर, बिलावल सारंग: जयजयवन्ती रामकली, दादरा', केदार, धनाश्री आदि शास्त्रीय राग-रागिनियों का भी सहारा लिया है। इस प्रकार, इस कवि ने अपने जीवन में संगीत के माध्यम से अध्यात्म रस की जो गंगा-जमुनी प्रवाहित की, वह बुन्देलखण्ड के हिन्दी-साहित्य के इतिहास का एक स्वर्णिम Jain Education International For Private & P90nal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525016
Book TitleSramana 1993 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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