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डॉ. कमल जैन
29. न्यायप्रदेशसूत्रवृत्ति 30. न्यायविनिश्चय 31. न्यायामृततरंगिणी 32. न्यायावतारवृत्ति 33. पंचनिर्गन्थी 34. पंचलिंगी 35. पंचवस्तुसटीक 36. पंचसंग्रह 37. पंचसूत्रवृत्ति 38. पंचस्थानक 30. पंचाशक 40. परलोकसिद्धि 41. पिंडनियुक्तिवृत्ति 42. प्रज्ञापनाप्रदेशव्याख्या 43. प्रतिष्ठाकल्प 44. वृहन्मिथ्यात्वमंथन 45. मुनिपतिचरित्र 46. यतिदिनकृत्य 47. यशोधरचरित 48. योगदृष्टिसमुच्चय 49. योगबिन्दु
50. योगशतक 51. लग्नशुद्धि 52. लोकतत्त्वनिर्णय 53. लोकबिन्दु 54. विंशति 55. वीरस्तव 56. वीरांगदकथा 57. वेदबाह्यतानिराकरण 58. व्यवहारकल्प 59. शास्त्रवार्तासमुच्चयसटीक 60. श्रावकप्रज्ञप्तिवृत्ति 61. श्रावकधर्मतंत्र 62. षड्दर्शनसमुच्चय 63. षोडशक 64. समकित पचासी 65. संग्रहणीवृत्ति 66. संमत्तसित्तिरी 67. संबोधसित्तरी 68. समराइच्चकहा 72. सर्वज्ञसिद्धिप्रकरणसटीक 73. स्याद्वादकुचोद्यपरिहार19
दशवैकालिक वृत्ति -- इस वृत्ति का नाम शिष्यबोधिनी वृत्ति है, यह भद्रबाहु विरचित नियुक्ति पर लिखी गई है। इसमें विविध कथानक लिखे गये हैं जो प्राकृत में हैं। मंगल की आवश्यकता बतायी गयी है। अभ्यन्तर और बाह्यतप, ध्यान, श्रमण, आचार्य, पंचमहाव्रत, रात्रिभोजन-विरमण, 14 गुण स्थान, विनय, आचार प्रणिधि की प्रक्रिया एवं फल की चर्चा की गयी है। आवश्यकवृत्ति -- यह टीका आवश्यक नियुक्ति पर है, कहीं-कहीं भाष्य की गाथाओं का भी प्रयोग किया गया है। अनेक प्रान्तीय, प्राकृत और संस्कृत गाथाओं का समावेश है। इसमें 22,000 श्लोक प्रमाण हैं। इसमें 5 प्रकार के ज्ञान मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और केवलज्ञान का भेद-प्रभेद पूर्वक व्याख्यान किया गया है। सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदन, ध्यान, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है। प्रशस्ति में आचार्य ने अपना संक्षिप्त परिचय भी दिया है। अनुयोगद्वार वृत्ति -- मूलग्रन्थ, चूर्णि-अंश के साथ तत्त्व- प्ररूपण, प्रमाण प्ररूपण, निक्षेप प्ररूपण
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