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________________ आचार्य हरिभद्र और उनका साहित्य और नय प्ररूपण के आधार से दार्शनिक पक्ष को स्पष्ट किया गया है। नन्दीवृत्ति -- यह वृत्ति नन्दीचूर्णि की ही रूपान्तर है। नन्दी ज्ञान के अध्ययन की योगयता-अयोग्यता का विचार करते हुये अयोग्य को ज्ञानदान देना अकल्याणकर कहा है। ज्ञान के भेद-प्रभेद स्वरूप विषय आदि का विस्तृत विवेचन किया है।20 प्रज्ञापना प्रदेश व्याख्या -- इसमें मंगल की विशेष विवेचना की गई है। प्रज्ञापना के विषय, कर्तृत्व आदि का वर्णन किया गया है। जीव प्रज्ञापना और अजीव प्रज्ञापना का वर्णन करते हुये एकेन्द्रियादि जीवों का विस्तारपूर्वक व्याख्यान किया गया है। वेद, लेश्या, इन्द्रियादि दृष्टियों से जीव विचार लोक सम्बन्धी, आयुर्बन्ध, पुद्गल, द्रव्य, अवगाढ सम्बन्धी अल्प-बहुत्व आदि का विचार किया गया है। नरक सम्बन्धी नारकपर्याय, अवगाह सतस्थानक, कर्मस्थिति और जीवपर्याय का विश्लेषण किया गया है। औदारिक शरीर, जीव-अजीव- स्त्री, कषाय, इन्द्रिय, प्रयोग लेश्या, ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि की विस्तृत चर्चा की है।21 योगविंशिका -- प्राकृत में निबद्ध योग विषयक ग्रन्थ है। 20 गाथाओं में योग शुद्धि का विवेचन करते हुये स्थान, ऊर्ण, अर्थ आलम्बन, अनालम्बन के भेद से 5 प्रकार का योग बताया गया है। योग की विकसित अवस्थाओं का वर्णन किया गया है। विशिका -- इसमें आचार्य हरिभद्र ने श्रावक की 11 प्रतिमाओं के बारे में चिंतन किया है। अनेकान्तजयपताका -- यह जैन सिद्धान्त पर लिखा गया एक क्लिष्ट ग्रन्थ है। इसमें 6 अधिकार हैं। जिनमें क्रमशः सदसदरूपवस्तु नित्यानित्यवस्तु, सामान्य-विशेष, अभिलाप्यनभिलाप्य, योगाचार, मुक्ति आदि विषयों का गम्भीर विवेचन किया गया है। संस्कृत में रचित 3500 श्लोक प्रमाण ग्रन्थ है। संभवतः यह ग्रंथ जैन दार्शनिक सिद्धान्त अनेकान्तवाद के विजयध्वज के रूप में प्रतिपादित किया गया है। अनेकान्तवाद प्रवेश -- संस्कृत में लिखा गया है, विषयवस्तु अनेकान्तजयपताका वाला ही है। सावयधम्मविहि -- 120 गाथाओं में सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का वर्णन करते हुये श्रावकों के विधि-विधानों का प्रतिपादन किया गया है। यह प्राकृत भाषा में निबद्ध है, मानदेवसूरि ने इस पर टीका लिखी है। धर्मबिन्दुप्रकरण -- इसमें 542 सूत्र हैं, जो 4 अध्यायों में विभक्त हैं। श्रमण और श्रावक धर्म की विवेचना की गई है, श्रावक बनने के पूर्व जीवन को पवित्र और निर्मल बनाने वाले पूर्व मार्गानुसारी के 35 गुणों की विवेचना की गई है। इस पर मुनि चन्द्रसूरि ने टीका लिखी है।22 सम्यक्त्व सप्तति -- इसमें 12 अधिकारों में द्वारा 70 गाथाओं सम्यक्त्व का स्वरूप बताया है। अष्ट प्रभावकों में वज्रस्वामी, भद्रबाहु मल्लवादी, विष्णुकुमार, आर्यखपुट, पादलिप्त और सिद्धसेन का चरित प्रतिपादित किया गया है। इसमें सम्यक्त्व के 67 बोलों पर प्रकाश डाला गया है संघतिलक सूरि ने इस पर टीका लिखी है। Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525014
Book TitleSramana 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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