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________________ आचार्य हरिभद्र और उनका साहित्य अविश्वसनीय बातों का प्रत्याख्यान पाँच धूर्तों की कथाओं के द्वारा किया गया है। लाक्षणिक शैली की यह अद्वितीय रचना है। रामायण, महाभारत और पुराणों में पाई जाने वाली कथाओं की अप्राकृतिक, अवैज्ञानिक, अबौद्धिक मान्यताओं तथा प्रवृत्तियों का कथा के माध्यम से निराकरण किया गया है। व्यंग और सुझावों के माध्यम से असंभव और मनगढन्त बातों को त्याग करने का संकेत दिया गया है। खंड्डपना के चरित्र और बौद्धिक विकास द्वारा नारी की विजय दिखलाकर मध्यकालीन नारी के चरित्र को उद्घाटित किया है। समराइच्चकहा -- हरिभद्र ने इसे धर्मकथा के नाम से उल्लिखित किया है, यह जैन महाराष्ट्री प्राकृत में लिखी गई है। कथा के माध्यम से प्राणी की राग-द्वेष और मोहात्मक प्रवृत्तियों के जन्म-जन्म व्यापी संस्कारों का अनूठा चित्रण किया गया है। इसमें निदान की मुख्यता बताई गई है। अग्निशर्मा पुरोहित, राजा गुणसेन द्वारा अपमानित किये जाने पर निदान बांधता है कि यदि उसके तप में कोई शक्ति है तो वह अगामी भव में बदला ले परिणाम स्वरूप अग्निशर्मा नौ भवों में अपने वैर का बदला लेता है। मूलकथा के अन्तर्गत अनेक उपकथायें हैं, जिनमें निर्वेद, वैराग्य, संसार की असारता, कर्मों की विचित्र परिणति, लोभ के दुष्परिणाम, माया, मोह, श्रमणत्व आदि विषय प्रतिपादित किये गये हैं। कर्म परिणति मुख्य उद्देश्य है। बताया गया है कि कुत्सित वृत्तियों से जीवन पतित हो जाता है। कलुषित और हीन कर्मों से मनुष्य अधोगति को प्राप्त करता है। आचार्य हरिभद्र प्रतिभाशाली लेखक थे। योग, दर्शन, न्याय जैसे गढ़ विषयों का निरूपण करने के साथ-साथ कथा जैसे सरस साहित्य का प्रणयन करके उन्होंने अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया है तथा भारतीय जन-जीवन के विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया है। पं. दलसुख मालवणिया ने षड्दर्शन समुच्चय की प्रस्तावना में कहा है कि आचार्य हरिभद्र ने अपने जैन वाङ्मय के विविध क्षेत्रों के साथ-साथ तत्कालीन जो भारतीय जैनेतर विद्यासमृद्धि थी, उसमें से भी भ्रमर की तरह मधु संचय करके जैन साहित्य की श्री वृद्धि की। आचार और दर्शन के जो मन्तव्य जैन धर्म के अनुकूल दिखाई पड़े, उन्हें अपने ग्रन्थों में निबद्ध कर लिया।33 Jain Education International For Private & Osonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525014
Book TitleSramana 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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