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डॉ. कमल जैन
उपदेशपद -- इसमें 1040 गाथायें हैं, इस पर मुनि चन्द्रसूरि ने सुखबोधिनी टीका लिखी है। आचार्य ने धर्मकथानुयोग के माध्यम से इस कृति में मन्दबुद्धि वालों के प्रबोध के लिये जैन धर्म के उपदेशों को सरल लौकिक कथाओं के रूप में संग्रहीत किया है। मानव पर्याय की दुर्लभता एवं बुद्धि चमत्कार को प्रकट करने के लिये कई कथानकों का ग्रन्थन किया है। मनुष्य जन्म की दुर्लभता को चोल्लक, पाशक, धान्य, द्यूत, रत्न, स्वपन, चक्रयूप आदि दृष्टांतों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है। बुद्धि के चार भेद औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा और परिणामिका का विस्तृत विश्लेषण किया गया है।32 योगबिन्दु -- संस्कृत में रचित 527 पद्यों की रचना है। इसमें जैनयोग के विस्तृत प्ररूपण के साथ-साथ अन्य परम्परा सम्मत योग की भी चर्चा है और जैनयोग की समालोचना की गई है। योग के अधिकारी अनाधिकारी का निर्देश करते समय अचरमावर्त में वर्तमान संसारी जीवों को 'भवाभिनन्दी' कहा है, जबकी चरमावर्त में वर्तमान शुक्लपाक्षिक, भिन्न- ग्रन्थि और चारित्री जीवों को योग का अधिकारी कहा है। इस अधिकार के लिये पूर्व सेवा के रूप में गुरुप्रतिपत्ति (गुरु, देव आदि का पूजन ) सदाचार, तप, मुक्ति के प्रति अद्वेष आदि गुणों का निर्देश किया है। विभिन्न प्रकार के चारित्रों के भेद के अन्तर्गत अपुनर्बन्धक, सम्यादृष्टि, देशविरति तथा सर्वविरति की चर्चा की गई है। आध्यात्मिक विकास में क्रमशः अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता, वृत्ति-संक्षेप आदि भेदों का उल्लेख किया है। योगाधिकारी के अनुष्ठानों में विष, गरल सद्-असद अनुष्ठान, तदेत् और अमतानुष्ठान का प्रतिपादन किया है। इसके स्पष्टीकरण के लिये सद्योग चिन्तामणि वृत्ति लिखी गई है, कई लोग इसे स्वोपज्ञ मानते हैं।33 शास्त्रवार्तासमुच्चय -- इसमें 700 श्लोक हैं जो 11 स्तबकों में विभक्त है। इसमें प्रमुख दार्शनिक मान्यताओं की समीक्षा की गई है। जिसमें भौतिकवाद, कालवाद, स्वभाववाद, नियतिवाद, कर्मवाद, ईश्वरवाद, प्रकृतिपुरुषवाद, क्षणिकवाद, विज्ञानवाद, शून्यवाद, बह्माद्वैतवाद, सर्वज्ञता-प्रतिषेधवाद का निरूपण किया गया है। हरिभद्र ने इस ग्रन्थ की व्याख्या भी स्वयं लिखी है, पर बहुत संक्षिप्त है। लोकतत्त्व निर्णय -- लोक तत्त्व निर्णय में हरिभद्र ने अपनी उदार दृष्टि का परिचय दिया है। अन्य दर्शनों के प्रस्थापकों को समन्वय दृष्टि से प्रस्तुत किया है। धर्म के मार्ग पर चलने वाले पात्र एवं अपात्र का विचार प्रस्तुत किया है। सुपात्र को ही उपदेश देने का विधान किया है। लग्नशुद्धि -- लग्नशुद्धि 133 गाथाओं में निबद्ध ज्योतिष ग्रन्थ है इसमें गोचरशुद्धि, प्रतिद्वार दशक, मास, वार, तिथि, नक्षत्र, योगशुद्धि, सुगणदिन, रजछन्नद्वार, संक्राति, कर्कयोग, हीरा, नवांश, द्वादशांश, षड्वर्गशुद्धि, उदयास्तशुद्धि इत्यादि विषयों पर चर्चा की गई है। द्विजवदनचपेटा -- धूर्ताख्यान की तरह यह भी एक व्यंगात्मक रचना है इसमें ब्राह्मण परम्परा में पल रही मिथ्या धारणा एवं वर्णव्यवस्था का खंडन किया गया है। धूर्ताख्यान -- यह व्यंग प्रधान रचना है। इसमें वैदिक पुराणों में वर्णित असंभव और
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