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श्रमण, अप्रैल-जून १९९२
ईसा की प्रथम शताब्दी से तृतीय शताब्दी के बीच की रचना माना जाता है अतः यह मानना होगा कि इन दश अवस्थाओं का सर्वप्रथम चित्रण तत्त्वार्थसूत्र में ही हुआ है। किन्तु यह मान्यता भी निर्दोष नहीं हो सकती क्योंकि परम्परागत दृष्टि से तो नियुक्तियों को भद्रबाहु प्रथम की ही कृति माना जाता है यद्यपि नियुक्तियों को प्रथम भद्रबाहु की कृति मानने पर दो समस्याएं उपस्थित होती हैं-प्रथम तो यह कि स्वयं दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति में ही नियुक्तिकार छेदसूत्रों के कर्ता प्राचीन गोत्रीय भद्रबाहु को प्रणाम करता है। यदि छेदसूत्रों के कर्ता भद्रबाहु प्रथम ही नियुक्तियों के रचनाकार हैं तो वे स्वयं अपने को कैसे प्रणाम कर सकते हैं ? दूसरी बाधा यह है कि आवश्यक नियुक्ति में वी०नि०सं० १८५ तक होने वाले सात निह्नवों का उल्लेख आया है साथ ही इसमें आर्यरक्षित (वीर निर्वाण सं० ५८४) का उल्लेख भी है। जबकि आचार्य भद्रबाहु का स्वर्गवास तो वीर नि० सं० १७० अर्थात् ई० पू० तृतीय शती में ही हो जाता है । वे अपने से लगभग ४०० वर्ष बाद अर्थात् वीर निर्वाण ५८४ में होने वाले निह्नवों और आर्यरक्षित का उल्लेख कैसे कर सकते हैं ?
इसलिये विद्वानों ने यह माना कि नियुक्तियाँ भद्रबाहु द्वितीय की रचनाएँ हैं किन्तु नियुक्तियों को वराहमिहिर के भाई भद्रबाहु की कृतियाँ मानने में भी कई कठिनाइयाँ हैं । यदि हम यह मानते हैं कि ईस्वी सन् की पाँचवीं शताब्दी में ोने वाले भद्रबाहु वराहमिहिर के भाई हैं तो सबसे पहला प्रश्न यह उठेगा कि वीर नि० सं० ६०९ अर्थात् ईस्वी सन् द्वितीय शती में होने वाले बोटिक निह्नव की चर्चा इसमें क्यों नहीं है ? दूसरे यह कि ईसा की पांचवीं शताब्दी के अन्त तक तो गुणस्थान की अवधारणा स्पष्ट रूप से आ गई थी उनका अन्तर्भाव नियुक्तियों में क्यों नहीं हो पाया, जबकि आचारांग नियुक्ति तत्त्वार्थ के समान मात्र दश अवस्थाओं की ही १. वंदामि भद्दबाहुं पाईणं चरिमसयलसुयनाणि । सुत्तस्स कारगमिसि दसासु कप्पे य ववहारे ।
__--दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति गाथा--१ २. देखें--आवश्यकनियुक्ति गाथा ७७४-७८३
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