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________________ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ तीर्थंकर महावीर के उपदेशों का संकलन जिन बारह अंगों में किया गया था उनमें 'उपासगदशांग' नामक एक अंग में श्रावकाचार का विवेचन था। उपलब्ध अर्धमागधी आगमों में सातवें अंग 'उवासगदसाओ' में श्रावकाचार का विवरण प्राप्त होता है। इसमें महावीर के दश प्रमुख उपासकों की कथाएँ हैं। उनमें प्रथम आनन्द श्रावक की कथा में श्रावकाचार का वर्णन किया गया है। उपलब्ध श्रावकाचार विषयक साहित्य के अन्तःनिरीक्षण से ज्ञात होता है कि सुदूर अतीत से आजतक सहस्रों वर्षों में इस आचार संहिता में देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार जैन मनीषियों द्वारा अनेक नये नियम-उपनियम सम्मिलित किये गये । तीर्थंकर परम्परा से प्राप्त जिस तात्विक चिन्तन की आधारभूमि पर इस आचारसंहिता का निर्माण हुआ था, उसमें निरन्तर वृद्धि हुई। इन नियम-उपनियमों के सम्मिलन से परम्परा प्राप्त आचारविषयक प्रचुर पारिभाषिक शब्दावली में और भी वृद्धि हुई है। श्रावकाचार विषयक ग्रन्थों में श्रावक या उपासक-धर्म का प्रतिपादन तीन प्रकार से प्राप्त होता है--(१) बारह व्रतों के आधार पर, (२) ग्यारह प्रतिमाओं के आधार पर और (३) पक्ष, चर्या अथवा निष्ठा एवं साधन के आधार पर । उवासगदसाओ उमास्वामीकृत तत्त्वार्थसूत्र, स्वामी समन्तभद्रकृत रत्नकरण्डक श्रावकाचार आदि ग्रन्थों में सल्लेखना के साथ बारह व्रतों के आधार पर श्रावक की आचार-संहिता का प्रतिपादन किया गया है। कुन्दकुन्द के चरितपाहुड, स्वामी कार्तिकेय के अणुवेक्खा और वसुनन्दिकृत श्रावकाचार में प्रतिमाओं के आधार पर श्रावकाचार का निरूपण है। आशाधरकृत सागारधर्मामृत में पक्ष, निष्ठा एवं साधना के आधार पर श्रावक की आचारसंहिता का विवेचन किया गया है। श्रावक अहिंसादि पाँच व्रतों का पालन करता है। श्रमण जिनका पूर्ण रूप से पालन करता है, उन्हीं व्रतों का श्रावक एकदेश रूप आंशिक पालन करता है । इसलिए उसके व्रत देशव्रत और अणुव्रत कहे जाते हैं । पाँच अणुव्रत इस प्रकार हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, बह्मचर्य और अपरिग्रह । ये पांचों अणुव्रत श्रावक के मूलगुण कहे गये हैं। शेष गुण इन्हीं गुणों में दृढ़ता, स्थैर्य, विकास, पुष्टि और रक्षा करने वाले हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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