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________________ प्राकृत जैनागम परम्परा में गृहस्थाचार प्रत्येक अणुव्रत में स्थिरता, दृढ़ता एवं विकास के लिए पाँच-पाँच भावनाओं का विवेचन किया गया है। अहिंसाणुव्रत में स्थिरता लाने के लिए वचनगुप्ति, मनगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और आलोकितपान भोजन ये पाँच भावनाएं विवेचित की गई हैं । सत्याणुव्रत की क्रोध प्रत्याख्यान, लोभप्रत्याख्यान, भीरुत्वप्रत्याख्यान, हास्यप्रत्याख्यान और अनुवीचिभाषण ये पाँच भावनाएँ बतलायी गयी हैं । अचौर्य या अस्तेय अणुव्रत में स्थिरता के लिए शून्यागार, विमोचितावास, परोपरोधाकरण, भैक्ष्यशुद्धि और सधर्माविसंवाद, इन पाँच भावनाओं का उल्लेख किया गया है । ब्रह्मचर्य अणुव्रत में दृढ़ता का विकास करने के लिए स्त्रीरागकथाश्रवणत्याग, स्त्रीमनोहराङ्गनिरीक्षणत्याग, पूर्वरतानुस्मरणत्याग, वृष्येष्ट रसत्याग और स्वशरीरसंस्कार त्याग, इन पाँच भावनाओं का विवेचन किया गया है । अपरिग्रहाणुव्रत की पाँच भावनाओं के रूप में इन्द्रियों के मनोज्ञ विषयों में राग नहीं करना और अमनोज्ञ विषयों में द्व ेष नहीं करना, इत्यादि का विवेचन किया गया है। इन अहिंसादि अणुव्रतों की रक्षा के लिए मंत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ, इन चार भावनाओं का निरन्तर अभ्यास करना भी आवश्यक बतलाया गया है । अणुव्रतों के पूर्ण पालन के लिए प्रत्येक अणुव्रत के पाँच-पाँच अति-चार भी बताए गये हैं, जिन्हें व्रतों के उपनियम कहा जा सकता है । अहिंसाणुव्रती श्रावक स्थूल त्रसहिंसा का त्याग तो करता ही है, साथ स्थावर जीवों की हिंसा का भी यथाशक्ति त्याग करता है । इस व्रत में शुद्धि के लिए पाँच अतिचारों का त्याग अपेक्षित बताया गया है । वे अतिचार इसप्रकार हैं—बन्ध, वध, छेद, अतिभारारोपण, और अन्नपाननिरोध । सत्याणुव्रत के पाँच अतिचारों में मिथ्योपदेश, रहोभ्याख्यान, कूटलेखक्रिया, न्यासापहार और साकारमंत्रभेद का विवेचन किया गया है । अचौर्य या अस्तेयाणुव्रत का पूर्णतः पालन करने के लिए स्तेन प्रयोग, स्तेन आहृतादान, विरुद्धराज्यातिक्रम, हीनाधिकमानोन्मान और प्रतिरूपकव्यवहार, इन पाँच अतिचारों का त्याग आवश्यक बताया गया है । ब्रह्मचर्याणुव्रत के पाँच अतिचारों में परविवाहकरण, इत्वरिकापरिगृहीतागमन, इत्वरिका अपरिगृहीतागमन अनंगकीड़ा और कामतीव्राभिनिवेश का विवेचन किया गया है । परि- Jain Education International ५१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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