SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'प्राकृत जैनागमः परम्परा में गृहस्थाचार ४९ कहा गया है। इस तरह जैनपरम्परा में दो प्रकार से आचारसंहिता के 'विधान मिलते हैं : १ श्रमणाचार, २. श्रावकाचार या उपासकाचार । प्रस्तुत निबन्ध में श्रावकाचार एवं उसकी पारिभाषिक शब्दावली पर संक्षिप्त अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। प्राकृत जैनागम परम्परा में व्रतधारी गृहस्थ के लिए अनेक शब्द प्रयुक्त हुए हैं -जैसे-अणुव्रती, देशविरत, अगारी, उपासक, श्रमणोपासक, सागार, अगारिक, श्रावक, श्रमणभूत आदि और उसके आचार तथा धर्म को गृहधर्म, श्रावकधर्म, अगारधर्म, उपासकधर्म उपासक प्रतिमा आदि कहा गया है । श्रावकाचार जिन, अर्हत् या तीर्थङ्करों द्वारा गृहस्थ की जीवन पद्धति के लिए निर्दिष्ट एक विशिष्ट आचारसंहिता है । प्राकृत साहित्य में व्रतधारी गृहस्थ के लिए दो शब्दों का व्यवहार बहुलता से हुआ है(१) सावग या सावय और (२) उपासग। इसी कारण सावग या श्रावक की जीवन पद्धति के लिए आचारसंहिता विषयक जिन ग्रन्थों का निर्माण हुआ, उनके नाम सावग या सावयधम्म, उपासगाचार, उवासयाज्झयण आदि दिये गये। बाद में इसी आधार पर संस्कृत में लिखे गये ग्रन्थों के श्रावकधर्म, श्रावकाचार, उपासकाध्ययन, उपासकाचार आदि नाम रखे गये। गृहस्थ श्रद्धापूर्वक अपने गुरुजनों अर्थात् श्रमणों से निर्ग्रन्थप्रवचन का श्रोता होने से श्रावक कहलाता है । श्रमण का उपासक होने के कारण उसे श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। श्रावक एकदेश रूप अणवत धारण करता है, इसलिए उसे अणुव्रती या देशविरत भी कहा गया है। श्रमण सर्वविरत कहलाता है परन्तु श्रावक उसके समान अहिंसादि व्रतों का पूर्ण रूप से पालन नहीं करता, इसलिए इसके व्रत अणुव्रत कहलाते हैं। श्रावक प्रायः घर में रहता है, अर्थात् उसके द्वारा घर का त्याग नहीं किया जाता, इसलिए उसके लिए सागार, आगारी, गृही, गृहस्थ आदि नामों के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं । इसी कारण सागार धर्म, श्रावकधर्म आदि नामों से भी ग्रन्थों की रचना की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy