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________________ श्रमण , जनवरी-मार्च, १९९२ कहते हैं कि धर्म अर्थात् साधनामार्ग दर्शन प्रधान है।' भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक में भी दर्शन को ही प्राथमिकता दी गई है। ७. मरण गुण ‘मरण गुण' नामक सातवें और अन्तिम द्वार में ग्रन्थकार समाधिमरण की उत्कृष्टता का बोध कराते हैं । वे कहते हैं कि विषयसुखों का निवारण करने वाली पुरुषार्थी आत्मा मृत्यु समय में समाधिमरण की गवेषणा करने वाली होती है । यह भी कहा गया है कि साधु कुछ समाधिमरण प्राप्त कर पाते हैं, अधिकांश का समाधिमरण नहीं होता है । कौन व्यक्ति लक्ष्य प्राप्त कर सकता है ? इस विषय में कहा गया है कि विनिश्चित बुद्धि से अपनी शिक्षा का स्मरण करने वाला व्यक्ति ही कसे हुए धनुष पर तीर चढ़ाकर चन्द्रक अर्थात् यन्त्र चालित पुतली के अक्षिका-गोलक को वेध पाता है, जो थोड़ा सा भी प्रमाद करता है वह लक्ष्य को नहीं वेध पाता । वस्तुतः चन्द्रकवेध्यक का अर्थ लक्ष्य को प्राप्त करना ही है। समाधिमरण किसे होती है ? इस विषय में कहा गया है कि सम्यक् बुद्धि को प्राप्त, अन्तिम समय में साधना में विद्यमान, पाप कर्म की आलोचना, निन्दा और गर्दा करने वाले व्यक्ति का मरण ही शुद्ध होता है अर्थात् उसका ही समाधिमरण होता है । कषाय किसी व्यक्ति का कितना अहित कर सकते हैं, यह दर्शाते हुए कहा गया है कि जिस व्यक्ति ने करोड़ पूर्व वर्ष से कुछ कम वर्ष तक चारित्र का पालन किया हो; ऐसे दीर्घ संयमी व्यक्ति के चारित्र को भी कषाय क्षणभर में नष्ट कर देते हैं। ___साधुचर्या का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे साधु धन्य हैं, जो सदैव राग रहित, जिनवचनों में लीन तथा निवृत्त कषाय वाले हैं एवं आसक्ति और ममता रहित होकर अप्रतिबद्ध विहार करने वाले, निरन्तर सद्गुणों में रमण करने वाले तथा मोक्ष मार्ग में लीन रहने वाले हैं। १. दर्शनपाहुड, २ । २. भत्तपइण्णा-पइण्णयसुताइं.-सम्पा० मुनि पुण्यविजय, गाथा ६५-६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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