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________________ २४ श्रमण, जनवरी-मार्च, १९९२ आवश्यक सूत्र जिसकी निर्युक्ति में ये गाथाएँ आई हैं- मात्र चौदह भूतग्राम हैं, - इतना बताती है, नियुक्ति उन १४ भूत ग्रामों का विवरण देती है । फिर उसमें इन १४ गुणस्थानों का विवरण दिया गया है । किन्तु ये गाथाएँ प्रक्षिप्त लगती हैं, क्योंकि हरिभद्र (८ वीं शती) ने आवश्यक नियुक्ति की टीका में 'अधुनामुमैव गुणस्थान द्वारेण दर्शयन्नाह संग्रहणिकार' कहकर इन दोनों गाथाओं को उद्धृत किया है । इससे स्पष्ट है कि प्राचीन नियुक्तियों के रचना काल में भी गुणस्थान की अवधारणा नहीं थी । नियुक्तियों के गाथा क्रम में भी इनकी गणना नहीं की जाती है ।" इससे यही सिद्ध होता है कि नियुक्ति में ये गाथाएँ संग्रहणीसूत्र से लेकर प्रक्षिप्त की गई हैं। प्राचीन प्रकीर्णकों में भी गुणस्थान की अवधारणा का अभाव है । श्वेताम्बर परम्परा में इन १४ अवस्थाओं के लिए 'गुणस्थान' शब्दका सर्वप्रथम प्रयोग हमें आवश्यकचूर्णि (७वीं शती) में मिलता है, उसमें लगभग तीन पृष्ठों में इसका विवरण दिया गया है । जहाँ तक दिगम्बर परम्परा का प्रश्न है उसमें कसायपाहुड को छोड़कर षट्खण्डागम ; १. चोद्दसहिं भूयगामेहि "वीसाए असमाहिठापेहि || - आवश्यक निर्युक्ति (हरिभद्र) भाग २, प्रका० श्री भेरूलाल कन्हैयालाल कोठारी धार्मिक ट्रस्ट, मुम्बई, वीर सं० २५०८; पृ० १०६-१०७. २. तत्थ इमाति चोद्दस गुणट्ठाणाणि ..अजोगिकेवली नाम सलेसीपडिवन्नओ, सोय तीहि जोगेहिं विरहितो जाव कखगघङ इच्चेताइं पंचहस्सक्खराई उच्चरिज्जति एवतियं कालमजोगिकेवली भवितूण ताहे सव्वकमणिमुक्को सिद्ध भवति । - आवश्यकचूर्णि (जिनदासगणि), उत्तर भाग, पृ० १३३-१३६, रतलाम १९२९ ३. एदेसि चेव चोद्दसहं जीवसमासाण परुवणट्ठदाए तत्थ इमाणि अट्ठ अणियोगद्वाराणि णायव्वाणि भवंति मिच्छादिट्ठि सजोगकेवली अजोगकेवली सिद्धा चेदि " - षट्खण्डागम (सत्प्ररूपणा), प्रका० जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर ( पुस्तक १ द्वि० सं० सन् १९७३, पृ० १५४-२०१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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