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________________ स्याद्वाद एवं शून्यवाद 'अव्यक्त है' एवं 'अव्यक्त नहीं है' इन दोनों पक्षों को समाहित किया है किन्तु शून्यवादियों ने वस्तुविषयक अनिर्वचनीयता के प्रसंग में ऐसा कोई संकेत नहीं किया है । इस परिप्रेक्ष्य में शून्यवाद अव्यक्तता के ऐकान्तिक मत का प्रतिपादक लगता है। यह बात अलग है कि उन्होंने लौकिक स्तर पर वस्तु विषयक कथन को निर्वचनीय माना है, किन्तु जब कथन को बात आती है तब वहाँ वे एकान्तिक मत के पक्ष में दिखायी देते हैं। (ड) शून्यवाद और स्याद्वाद दोनों ने यह स्वीकार किया कि व्यावहारिक स्तर पर तत्त्वविषयक कथन सम्भव है, किन्तु पारमार्थिक स्तर पर नहीं । व्यावहारिक स्तर पर प्रयुक्त भाषा एकान्तिक ही हो सकती है । इसी कारण यह मिथ्या होते हैं। पारमार्थिक स्तर पर वस्तु विषयक कथन के लिए हमारे पास अनेकान्तिक कोई भाषा ही नहीं है। व्यवहार और परमार्थ को शून्यवादियों ने संवृति सत्य और पारमार्थिक सत्य द्वारा व्यक्त किया है तो स्याद्वाद ने व्यवहारनय एवं निश्चयनय के माध्यम से। यद्यपि दोनों शब्द भिन्न हैं, किन्तु भाव एक ही है। (च) दोनों ही सिद्धान्तों की यह मान्यता है कि यदि एक भाव का परमार्थ स्वरूप ज्ञात कर लिया तो सभी भावों का परमार्थ स्वरूप ज्ञात कर लिया ऐसा मानना चाहिए-जो एक को जानता है वह सबको जानता है। जो सबको जानता है वह एक को जानता है । बौद्धाचार्य चन्द्रकीति का भी यही मन्तव्य है । (छ) शून्यवादियों को निषेधपरक दृष्टि अपनाने के लिए निर्विकल्पी तथा स्याद्वादियों को विधिपरक दृष्टि अपनाने के कारण सविकल्पी कहा जा सकता है। (ज) शून्यवादी सभी मतों का निषेध कर देने के कारण निरपेक्षवादी भी कहे जा सकते हैं (यद्यपि उनका यह निषेध सापेक्षता की अनुभूति पर आधारित है और स्याद्वादी सभी मतों को समन्वित करके अपनाने के कारण सापेक्षवादी कहला सकते हैं। १. आचारांग १।३।४ २. माध्यमक वृत्ति पृ० ५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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