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________________ ( ९४ ) नामक ग्रन्थ लिखकर भाषा दर्शन सम्बन्धी प्रश्नों पर जैन परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण अवदान प्रस्तुत किया था । नैतिक, धार्मिक, उपदेश आदेशात्मक कथन आदि सत्य और असत्य की कोटि से परे हैं । इस तथ्य का उद्घोष पाश्चात्य दार्श'निक बड़े गर्व से करते हैं और इसे अपनी मौलिक खोज मानते हैं । किन्तु आज से लगभग २००० वर्ष पूर्व जैन चिन्तकों ने प्रज्ञापना आदि अनेक प्राचीन स्तर के ग्रन्थों में भाषा की सत्यता के चार प्रारूपों का निश्चय कर यह बता दिया था कि कुछ भाषायी कथन ऐसे भी होते हैं जो सत्य और असत्य की कोटि से परे होते हैं । उसमें उन्होंने अम्म न्त्रणी, निमन्त्रणी, उपदेशात्मक, आदेशात्मक आदि १२ प्रकार के भाषा के कथनों को सत्य और असत्य की कोटि से परे बताया था । जिन तथ्यों को हमारे समकालीन दार्शनिक अपने मौलिक चिन्तन के नाम पर प्रस्तुत करते हैं, वे तथ्य आज से लगभग २००० वर्ष पूर्व चर्चित हो चुके थे । किन्तु दुर्भाग्य है कि हमारे दार्शनिक इससे अपरिचित हैं । भारत में भाषा दर्शन की परम्परा कितनी महान और गम्भीर है, यह - बताने की दृष्टि से ही मैंने प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का प्रणयन किया, क्योंकि, इस दिशा में अभी तक महत्त्वपूर्ण प्रयत्नों का अभाव ही था । यद्यपि प्रो० गौरीनाथ शास्त्री और प्रो० रामचन्द्र पाण्डेय ने सर्व प्रथम भारतीय भाषा चिन्तन पर अपने ग्रन्थ लिखे हैं, किन्तु इन दोनों ग्रन्थों में जैन दार्शनिकों के भाषा दर्शन के क्षेत्र में दिये गये अवदान की उपेक्षा ही रही एवं उसके साथ कोई न्याय नहीं हो सका । यद्यपि जैन भाषा दर्शन पर सर्वप्रथम पाटण में डॉ० सागरमल जैन ने अपने तीन व्याख्यान दिये थे और वे व्याख्यान संशोधित और परिवर्धित होकर एक लघुकाय पुस्तक के रूप में प्रकाशित भी हुये किन्तु वह एक प्रारम्भिक प्रयत्न ही था । उन्हीं की प्रेरणा और मार्गदर्शन को लेकर मैंने प्रस्तुत शोध निबन्ध का प्रणयन किया है । प्रस्तुत शोध निबन्ध छ: अध्याओं में विभक्त है । प्रथम अध्याय में हमने मानव व्यवहार में भाषा का स्थान एवं महत्त्व, भारतीय चिन्तन में भाषा - दर्शन का विकास और भारतीय भाषा दर्शन की प्रमुख समस्याओं की चर्चा की है। इसी प्रसंग में वैयाकरण, नैयायिक, मीमांसक और बौद्धों के दृष्टिकोणों को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है तथा For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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