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________________ ( ९२ ) समानता है। यह समानता दो भिन्न मार्गी परम्परा के ग्रन्थों में प्राप्त होती है जो सामान्य पाठक को आश्चर्य में डाल देती है। समानता से यह प्रश्न उठ सकता है कि किस परम्परा ने किससे लिया। परन्तु स्पष्ट प्रमाण के अभाव में ऐसा समुचित उत्तर सम्भव नहीं है जिसके आधार पर हम एक को पूर्ववर्ती एवं दूसरे को उत्तरवर्ती सिद्ध कर सकें। जहाँ तक महाभारत का प्रश्न है, इसका कथानक तो अवश्य ही प्राचीन है, परन्तु इसका लिखित रूप एवं संपादन कार्य बाद का है। इतिहासकारों की यह धारणा है कि इसका अन्तिम सम्पादन प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व या उसके आस-पास की घटना है। यही बात उत्तराध्ययन के विषय में भी कही जा सकती है। उत्तराध्ययन जैन परम्परा में अंगों के बाद आता है परन्तु इसके कुछ कथानक अंगों के समान ही प्राचीन हैं। जहाँ तक इसके अन्तिम सम्पादन का प्रश्न है, वह भी प्रथम शताब्दी ईस्वी के लगभग ही है । मेरे विचार से यह कथानक महाभारत एवं उत्तराध्ययन दोनों से प्राचीन है। ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों ने एक ही मूल स्रोत से ग्रहण किया। दोनों कथानकों में कोई विशेष अन्तर नहीं है और जैसा हमने देखा दोनों में भावों की ही नहीं अपितु भाषा की भी समानता है। महाभारत में इस कथानक को "पुरातनम्" कहा गया है।' यही बात उत्तराध्ययन में भी कही गई है। यहाँ इस कथानक के लिए "पुरे पुराणे उसुयारनामे" कहा गया है । स्पष्टतः दोनों परम्पराएँ यह स्वीकार करती हैं कि यह कथानक किसी प्राचीन स्रोत से लिया गया है। दोनों ही कथानकों के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि ये साम्प्रदायिक अभिनिवेश से मुक्त हैं । महाभारत का उपदेश किसी भी जैन मुनि के लिए पालनीय हो सकता है। इसी प्रकार सच्चे भिक्षु का जो वर्णन उत्तराध्ययन में है, वह किसी भी वैदिक परम्परा के संन्यासी के लिए •पालनीय है। प्रवक्ता, प्राचीन इतिहास एस० बी० डिग्री कालेज, सिकन्दरपुर, बलिया १. वही, २७७२. २. उत्तराध्ययन, १४।१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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