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चतुरंग सेना के तथा अक्षौहिणी सेना युद्ध-प्रणाली
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अतिरिक्त पाण्डव पुराण में विद्याधर सेना' का उल्लेख भी आया है ।
पाण्डव पुराण में प्राप्त युद्ध सम्बन्धी वर्णन प्राचीन काल से चली आ रही धर्मयुद्ध की परम्परा के हैं । पाण्डव पुराण के युद्ध वर्णनों से स्पष्ट है कि प्रायः रात्रि में युद्ध रोक दिया जाता था लेकिन बीसवें पर्व में एक स्थान पर कहा गया है कि योद्धागण रात्रि में और दिन में हमेशा लड़ते रहते थे और जब उन्हें निद्रा आती थी तब वे रण-भूमि में ही इधर-उधर लुढ़कते थे और सो जाते थे फिर उठकर लड़ते थे और मरते थे । युद्ध के समय उचित-अनुचित, मान-मर्यादा का पूरा ध्यान रखा जाता था । युद्ध भूमि में द्रोणाचार्य के उपस्थित होने पर अर्जुन शिष्य का गुरु के साथ युद्ध करना अनुचित बतलाते हैं तथा मर्यादा का पालन करते हुये, गुरु के कहने पर भी वे गुरु से पहला बाण छोड़ने को कहते हैं । पितामह भीष्माचार्य के युद्ध भूमि में पृथ्वी पर गिर पड़ने पर दोनों पक्षों के सभी राजा रण छोड़कर आचार्य के पास आ जाते हैं । इससे स्पष्ट है कि बड़ों का मान-सम्मान युद्ध भूमि में भी किया जाता था ।
पाण्डव पुराण के युद्ध वर्णनों में प्रायः अनेक प्रकार के दिव्यास्त्रोंके प्रयोग का उल्लेख आया है । उदाहरणार्थं - शासन देवता से प्राप्त नागबाण, उत्तम दैवी गदा, जलबाण, स्थलबाण तथा नभश्चर बाण' । विद्या के बल से भी युद्ध किया जाता था । इस सन्दर्भ में
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१.
पाण्डव पुराण ३।१०४
२. वही, १८ १७०, १९।४५, १९ ।९६.
३. वही, २०१३८, १९/१९६
४. वही, २०।२४१
५. वही, १८ । १३१-१३४
६. वही, १९।२५१
७. वही, २०।१७६ ८. वही, २०।१३३ ९. वही, २०।२८३
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