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________________ (८३) ऐसी भूमि ढढ़ी जाती थी, जिसमें परिखा बन सके । क्योंकि पाण्डव पुराण में परिखा का वर्णन मिलता है इससे स्पष्ट है कि दुर्ग भी अवश्य रहे होंगे । उनका वर्णन नहीं किया गया है। सेना किसी भी राज्य के आधार कोष एवं सेना माने गये हैं। राजा की शक्ति सैन्यबल से ही प्रभावशाली बन पाती है। प्राचीन काल से ही राजशास्त्र-प्रणेताओं ने बल का महत्त्व स्वीकार किया है । कौटिल्य के अनुसार राजा को दो प्रकार के कोपों से भय रहता है पहला-आन्तरिक कोप, जो अमात्यों के कोप से उत्पन्न होता है, दूसरा बाह्य कोप, जो राजाओं के आक्रमण का है। इन दोनों कोपों से रक्षा सैन्यबल से ही हो सकती है। पाण्डव पुराण में चतुरङ्गिणी सेना (बल) का उल्लेख अनेक स्थानों पर आता है। चतुरङ्ग बल के अन्तर्गत हस्तिसेना, अश्व-सेना, रथ-सेना तथा पदाति-सेना आती है। राजा श्रेणिक महावीर प्रभु के दर्शनार्थ वैभार पर्वत पर चतुरङ्ग सेना के साथ पहुँचते हैं । इसी प्रकार राजा पाण्डु वन क्रीड़ा के लिये चतुरङ्ग सेना के साथ वन में प्रस्थान करते हैं । युद्ध-क्षेत्र में तो शत्रु राजाओं से युद्ध करते समय चतुरङ्गिणी सेना का प्रयोग होता था लेकिन सुलोचना के स्वयम्बर में जयकुमार के वरण करने पर अर्ककीर्ति कुमार तथा जयकुमार के बीच हुये युद्ध में भी चतुरङ्ग सेना का उल्लेख आया है । इसी प्रकार द्रौपदी स्वयम्वर के समय पाण्डव-कौरवों के बीच हये युद्ध में चतुरङ्ग सेना का वर्णन आया है। इससे स्पष्ट है कि राजा लोग हर समय युद्ध के लिए तैयार रहते थे तथा सेना हमेशा सुसज्जित एवं तत्पर होती थी। १. पतञ्जलिकालीन भारत, पृ० ३८१ २. पाण्डव पुराण, १।१०५ ३. वही, ९।२-६ ४. वही, ३८१-८४ ५. वही, १५।१३०.१३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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