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रसद एवं भिक्षु । मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति, तथा महाभारत में भी इनका महत्त्व प्रतिपादित है । पाण्डव पुराण में जरासन्ध के गुप्त पुरुषों द्वारा द्वारिका में रह रहे पाण्डवों की खोज कराने का उल्लेख मिलता है"।
राष्ट्र- रक्षा
दुर्ग, प्राकार एवं परिखा
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शत्रुओं के आक्रमण से नगर एवं राजा की रक्षा के लिये प्राकार एवं दुर्ग का निर्माण किया जाता था। नगर की सुरक्षा की दृष्टि से उसके चारों ओर एक ऊँची सुदृढ़ दीवार बनायी जाती थी जिसे प्राकार कहा जाता था । पाण्डव पुराण में अत्यधिक ऊँचे प्राकार बनाने का उल्लेख आया है । हस्तिनापुर नगर के प्राकार के शिखरों पर ताराओं का समूह जड़े हुये मोतियों के समान सुशोभित हो रहा था । इस वर्णन से ही इस प्राकार की ऊँचाई का अनुमान लगाया जा सकता है । नगर की सुरक्षा के लिये उनके चारों ओर परिखा या खाईं खोदी जाती थी । हस्तिनापुर नगर की खाईं शेषनाग के द्वारा छोड़ी हुई विष पूर्ण, मणियुक्त और भय दिखाने वाली मानों काञ्चन ही प्रतीत होती थी । एक अन्य स्थान पर चम्पापुरी नगर की खाईं की तुलना पाताल की गहराई से की गयी है । शत्रु के आक्रमण के समय नगरद्वार को बन्द करने का वर्णन भी आया है । पाण्डव पुराण में दुर्ग का उल्लेख कही नहीं आया है । पतञ्जलि के अनुसार दुर्ग बनाने के लिये
१. अर्थशास्त्र १।१०
२. मनुस्मृति, ७।६६
३. याज्ञवल्क्य स्मृति, १.३२७
४. महाभारत ६.३६.७.१३
५. पाण्डव पुराण, १९।२६
६. वही, २०१८५
७. वही, २।१८६ ८. वही, ७।२७०
९.
वही, २१।१३०
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