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के मस्तक पर वीरपट्ट बाँधने तथा किसी समय भरत चक्रवर्ती द्वारा जयकुमार के मस्तक पर वीरपट्ट बाँधकर सेनापति पद दिये जाने का वर्णन मिलता है । इससे स्पष्ट है कि सेनापति के पद पर अत्यधिक वीर, साहसी, गुणी एवं योग्य व्यक्ति नियुक्त किया जाता था ।
दूत
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दूत राज्य का अभिन्न अङ्ग है । प्राचीन समय से ही राजनीति में उसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । महाभारत, मनुस्मृति तथा हितोपदेश में दूतों के गुणों का विशद वर्णन है । कौटिल्य ने दूत को राजा का गुप्त सलाहकार माना है । दूत प्रकाश में कार्य करता है जबकि गुप्तचर छिप कर । दूत शब्द का अर्थ है - सन्देशवाहक, जिससे स्पष्ट है कि किसी विशेष कार्य के सम्पादनार्थ ही दूत भेजे जाते थे । पाण्डव पुराण में दूत व्यवस्था का उल्लेख अधिक मिलता है । राजा अन्धकवृष्टि का पाण्डु व कुन्ती के विवाहार्थ व्यास राजा के पास दूत भेजने का ", द्रुपद राजा का द्रौपदी स्वयंवर के लिये निमन्त्रण पत्रिकायें देकर दूतों को भेजने चक्रवर्ती का यादवों के पास दूत भेजने केशव का कर्ण के पास दूत भेजने' आदि अनेक उदाहरण पाण्डव पुराण में मिलते हैं ।
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गुप्तचर
गुप्तचर राजा की आँखे हैं इन्हीं के द्वारा वह राज्य की गतिविधियों को देखता रहता है । प्राचीन समय से ही गुप्तचरों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । कौटिल्य ने कार्यभेद से गुप्तचरों के नौ विभाग किये हैं- कापाटिक, उदास्थित, गृहपतिक, वैदहेक, तापस, स्त्री, तीक्ष्ण,
१. पाण्डवपुराण २०।३०६
२ . वही, ३।५९
३. महाभारत, उद्योगपर्व, ३७।२७
४. मनुस्मृति, ७।६३-६४
५. हितोपदेश विग्रह, १९
१
६. पाण्डव पुराण ८ १३ ७. वही, १५/५३ ८. वही, १९।३९
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