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इसी प्रकार राजा द्रुपद ने तथा राजा ज्वलनवटी ने अपनी-अपनी पुत्री के विवाह के सम्बन्ध में मन्त्रियों से सलाह ली । मन्त्रीगण अनेक युक्तियों से राजा की रक्षा भी करते थे । किसी विद्वान् का अमोघजिह्वा नामक आदेश देने पर कि आज से सातवें दिन पोदपुराधीश के मस्तक पर वज्रपात होगा चित्तपुर राजा ने सभी मन्त्रियों से विचार-विमर्श किया तथा युक्ति-निपुण सब मन्त्रियों ने सलाह करके राजा के पुतले को सिंहासन पर स्थापित करके राजा की रक्षा की थी ।
युद्ध क्षेत्र में भी मन्त्री राजा के साथ होते थे । जरासन्ध के सेनापति "हिरण्यनाभ" के युद्ध में मारे जाने पर मन्त्रियों की सलाह से जरासन्ध राजा, मेचक राजा को सेनापति नियुक्त करता है ।
पुरोहित
राष्ट्र की रक्षा के लिये पुरोहित को नियुक्त करना भी आवश्यक माना गया है । कौटिल्य के अनुसार पुरोहित को शास्त्र - प्रतिपादित विद्याओं से युक्त, उन्नतशील षडङ्गवेत्ता, ज्योतिष शास्त्र, शकुन शास्त्र तथा दण्ड नीतिशास्त्र में अत्यन्त निपुण और देवी तथा मानुषी आपत्तियों के प्रतिकार में समर्थ होना चाहिये । याज्ञवल्क्यस्मृति के अनुसार पुरोहित को ज्योतिष शास्त्र का ज्ञाता, सब शास्त्रों में समृद्ध, अर्थशास्त्र में कुशल तथा शान्ति कर्म में निपुण होना चाहिये । मनु के अनुसार भी पुरोहित को ग्रह्म कर्म तथा शान्त्यादि में निपुण होना चाहिये ।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि राष्ट्र में धर्म-प्रतिनिधि पुरोहित था । इस पद का महत्त्व वैदिक युग से ही रहा है । पुरोहित का अर्थ है- आगे स्थापित ( पुर एवं दधति) ' ।
१. पाण्डव पुराण १५।५०-५१
२ . वही, ४|१३
३. वही, ४१३१-१३३
४. वही, १९।६६
कौटिल्य अर्थशास्त्र, १ अधिकार, प्रकरण ४. अध्याय ४, पृ० २४
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६. याज्ञवल्क्य स्मृति, १.३.१३
७. मनुस्मृति, ७।७८
८. यास्क - निरुक्त २.१२
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